“मणिपुर में महिलाओं पर कथित लाठीचार्ज के विरोध में आदिवासी संगठन का कड़ा रुख, कांगपोकपी जिले में आर्थिक नाकेबंदी शुरू”
चुराचांदपुर (मणिपुर) : मणिपुर के कांगपोकपी जिले में कुकी-जो समुदाय और सुरक्षा बलों के बीच जारी तनाव ने एक नई स्थिति को जन्म दिया है, जहां कुकी-जो परिषद और अन्य आदिवासी संगठनों ने विरोध के रूप में आर्थिक नाकेबंदी और बंद का आह्वान किया है। यह विरोध प्रदर्शन कथित तौर पर सैबोल गांव में महिलाओं पर सुरक्षा बलों द्वारा किए गए लाठीचार्ज और उनके अधिकारों एवं गरिमा की अनदेखी के खिलाफ हो रहे हैं।
पृष्ठभूमि और घटना का विवरण:
मणिपुर के कांगपोकपी जिले के सैबोल गांव में 31 दिसंबर को कुकी-जो महिलाओं और सुरक्षा बलों के बीच झड़प हुई। यह घटना तब हुई जब महिलाओं की एक भीड़ ने सेना, बीएसएफ और सीआरपीएफ की संयुक्त टीम की तैनाती में बाधा डालने की कोशिश की। सुरक्षा बलों और महिलाओं के बीच इस झड़प में महिलाओं पर लाठीचार्ज का आरोप लगाया गया है, जिससे महिलाओं को चोटें आईं।
कुकी-जो परिषद की प्रतिक्रिया:
कुकी-जो परिषद ने इस कथित लाठीचार्ज के विरोध में 2 जनवरी की आधी रात से लेकर शनिवार सुबह 2 बजे तक आर्थिक नाकेबंदी की घोषणा की। इस दौरान कुकी-जो क्षेत्रों से गुजरने वाले सभी वाहनों और आवश्यक वस्तुओं की आवाजाही पर पाबंदी लगा दी गई। परिषद के अध्यक्ष, हेनलियेंथांग थांगलेट, ने चुराचांदपुर में एक प्रेस वार्ता के दौरान कहा कि अगर महिलाओं को हुए नुकसान के लिए सरकार मुआवजा नहीं देती और सुरक्षा बलों की कार्रवाई पर कदम नहीं उठाती, तो विरोध और तेज किया जाएगा।
सीओटीयू का बंद और विरोध प्रदर्शन:
आदिवासी एकता समिति (सीओटीयू) ने भी 24 घंटे का बंद घोषित किया, जो सैबोल गांव में कथित लाठीचार्ज की घटना के खिलाफ था। संगठन ने सुरक्षा बलों की तैनाती को “अनावश्यक और उकसाने वाला” करार देते हुए तुरंत उन्हें हटाने की मांग की। इसके अलावा, मोरेह यूथ क्लब कार्यालय के पास भी कुकी-जो महिलाओं पर सुरक्षा बलों की कथित कार्रवाई के खिलाफ धरना आयोजित किया गया।
जातीय संघर्ष और बफर जोन का मुद्दा:
कुकी और मेतेई समुदायों के बीच लंबे समय से चल रहे जातीय तनाव के मद्देनज़र, बफर जोन की अवधारणा बनाई गई थी, जो इन समुदायों के संघर्षों से दूर एक तटस्थ क्षेत्र के रूप में काम करता है। हालांकि, कुकी-जो परिषद का आरोप है कि सरकार इस क्षेत्र की पवित्रता बनाए रखने में विफल रही है। परिषद ने चेतावनी दी है कि अगर स्थिति में सुधार नहीं होता, तो यह नाकेबंदी दोबारा लागू की जाएगी।
सरकार और समाज की भूमिका:
मणिपुर में चल रहे इस संकट ने प्रशासन पर दबाव बढ़ा दिया है। स्थानीय सरकार को समुदायों के बीच विश्वास बहाल करने और बफर जोन की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए त्वरित कदम उठाने होंगे। वहीं, यह स्थिति मणिपुर में 2023 से चल रहे जातीय हिंसा का विस्तार है, जिसमें अब तक ढाई सौ से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और हजारों लोग बेघर हो चुके हैं।
सार्वजनिक चिंता और मांगें:
इस विरोध ने मणिपुर में आदिवासी समुदायों के अधिकारों और उनकी गरिमा पर गहराई से सोचने का अवसर प्रदान किया है। कुकी-जो परिषद, सीओटीयू, और अन्य संगठनों ने न केवल आर्थिक नाकेबंदी और बंद के माध्यम से अपनी आवाज उठाई है, बल्कि यह भी स्पष्ट किया है कि जब तक उनके मुद्दों का समाधान नहीं किया जाता, तब तक उनके विरोध प्रदर्शन जारी रहेंगे।