जज कैशकांड पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का बड़ा बयान: न्यायपालिका में पारदर्शिता

दिल्ली:  राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर बल देते हुए स्पष्ट किया कि इन संवैधानिक संस्थाओं के बीच कोई टकराव नहीं है, बल्कि ये सभी एक समन्वित प्रणाली के रूप में कार्य करती हैं। बुधवार को राज्यसभा में अपने संबोधन के दौरान उन्होंने कहा कि शासन के सभी अंगों को पारस्परिक सहयोग और संतुलन के साथ कार्य करना चाहिए ताकि लोकतंत्र की बुनियादी संरचना मजबूत बनी रहे। इस संदर्भ में उन्होंने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि इसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द न किया गया होता, तो न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया में बदलाव संभव था।

यह चर्चा ऐसे समय में हो रही थी जब न्यायपालिका से जुड़े एक बड़े विवाद ने देश का ध्यान आकर्षित किया था। न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के नई दिल्ली स्थित आवास पर भारी मात्रा में नकदी मिलने के मामले ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी थी। इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने विभिन्न दलों के नेताओं के साथ इस पर चर्चा करने के लिए एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, जो बुधवार शाम 4:30 बजे आयोजित की गई। उन्होंने कहा कि यह मामला केवल एक संस्थान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शासन प्रणाली के सभी अंगों के लिए विचार-विमर्श का विषय है।

इससे पहले मंगलवार को राज्यसभा में एनजेएसी से संबंधित चर्चा के दौरान उन्होंने न्यायिक पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को रेखांकित किया था। इस मुद्दे पर चर्चा के दौरान सदन के नेता और केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा, विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे सहित कई प्रमुख दलों के नेता मौजूद थे। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने इस बैठक में सहमति और सहयोग की भावना को महत्वपूर्ण बताया और कहा कि यह विवाद कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच किसी प्रकार के संघर्ष को नहीं दर्शाता, बल्कि यह सभी संस्थाएं अपने संवैधानिक दायित्वों के तहत कार्य कर रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए ‘चेक एंड बैलेंस’ प्रणाली आवश्यक है, ताकि लोकतांत्रिक मूल्यों को संरक्षित किया जा सके।

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि पहली बार भारत के मुख्य न्यायाधीश ने इस विवाद से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी को सार्वजनिक डोमेन में रखने की पहल की, जिससे न्यायपालिका में पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाए गए हैं। इसके बाद विपक्ष के नेता की ओर से सुझाव आया कि इस विषय पर गहन विचार-विमर्श होना चाहिए, जिस पर सदन के नेता ने भी सहमति जताई। इसी के तहत उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सदन के विभिन्न नेताओं के साथ चर्चा करने का निर्णय लिया और बैठक का समय निर्धारित किया।

इस पूरे घटनाक्रम के मद्देनजर यह स्पष्ट होता है कि न्यायपालिका और अन्य संवैधानिक संस्थानों के बीच समन्वय को बनाए रखना आवश्यक है। इस संदर्भ में राज्यसभा के सभापति के बयान ने यह संकेत दिया कि सरकार और राजनीतिक नेतृत्व इस विषय पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं और किसी भी संवैधानिक संकट को टालने के लिए सभी पक्षों के साथ व्यापक संवाद आवश्यक है।