महाभारत के युद्ध से पहले, बर्बरीक ने अपनी माता हिडिम्बा को वचन दिया था कि वह युद्ध में हारने वाले पक्ष का समर्थन करेंगे। श्रीकृष्ण को जब इस बात का पता चला, तो उन्होंने ब्राह्मण के रूप में बर्बरीक से उनके वचन और शक्तियों के बारे में पूछा। जब बर्बरीक ने अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन किया, तो श्रीकृष्ण ने उनसे उनके शीश का दान मांगा ताकि वे युद्ध में न लड़ सकें। बर्बरीक ने बिना किसी झिझक के अपने वचन का पालन करते हुए अपना शीश श्रीकृष्ण को दान कर दिया। उन्होंने श्रीकृष्ण से यह इच्छा जताई कि वह अपने शीश के माध्यम से महाभारत का पूरा युद्ध देखना चाहते हैं।
श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के शीश को एक ऊंचे पर्वत पर स्थापित कर दिया, जिससे वह पूरे युद्ध का मूकदर्शक बन सके। युद्ध समाप्त होने के बाद, जब पांडवों ने बर्बरीक के शीश से पूछा कि युद्ध में सबसे बड़ा योद्धा कौन था, तो बर्बरीक ने उत्तर दिया कि युद्ध में हर जगह श्रीकृष्ण ही लड़ते हुए दिखाई दिए। उन्होंने कहा कि युद्ध में सभी योद्धा श्रीकृष्ण की कृपा से ही जीत रहे थे।
इससे प्रसन्न होकर, श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया कि कलियुग में वह “श्याम” के नाम से जाने जाएंगे और जो भी व्यक्ति सच्चे मन से उनकी आराधना करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। खाटू श्याम जी को “हारे का सहारा” कहा जाता है, क्योंकि वे हर उस व्यक्ति की मदद करते हैं जो जीवन में हार का सामना कर रहा होता है। भक्तगण उन्हें समर्पित भाव से पूजा करते हैं और विश्वास रखते हैं कि श्याम बाबा उनके सभी कष्टों का निवारण करेंगे।
आज खाटू श्याम धाम में हर वर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं और बाबा श्याम के दर्शन कर उनके चरणों में अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। यह स्थान सिर्फ एक तीर्थस्थल नहीं है, बल्कि श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है, जहां लोग अपनी आस्था के साथ जीवन की नई दिशा और ऊर्जा प्राप्त करते हैं। जय श्री श्याम!