पराक्रम दिवस: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 128वीं जयंती पर देशभर में हुए कार्यक्रम, मोदी ने बच्चों संग लगाए ‘जय हिंद’ के नारे

दिल्ली:   नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 128वीं जयंती पर देशभर में श्रद्धांजलि अर्पित की गई और उनके अविस्मरणीय योगदान का सम्मान करते हुए पराक्रम दिवस मनाया गया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और अन्य राजनीतिक नेताओं ने संविधान सदन के सेंट्रल हॉल में पुष्पांजलि अर्पित की। नेताजी के साहस और देशभक्ति की भावना को याद करते हुए कई कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिनमें युवाओं और बच्चों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया।

प्रधानमंत्री मोदी की श्रद्धांजलि और बच्चों से बातचीत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेंट्रल हॉल में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद बच्चों से बातचीत की। इस दौरान बच्चों ने ‘जय हिंद’ के जोशीले नारे लगाए, जो नेताजी के नारे थे और आज भी उनके देशप्रेम की भावना को प्रकट करते हैं। मोदी ने सोशल मीडिया पर एक संदेश में कहा, “पराक्रम दिवस पर मैं नेताजी सुभाष चंद्र बोस को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान अद्वितीय है। वे साहस और धैर्य के प्रतीक थे। उनका विजन हमें प्रेरित करता रहता है, क्योंकि हम उनके सपनों का भारत बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।”

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का संदेश

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में नेताजी को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने लिखा, “पराक्रम दिवस के रूप में मनाई जाने वाली नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर, मैं भारत माता के महानतम सपूतों में से एक को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं। उनकी दूरदर्शिता और साहस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा दी। आज़ाद हिंद फ़ौज का उनका साहसिक नेतृत्व और स्वतंत्रता के लिए उनका दृढ़ निश्चय हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।”

अन्य नेताओं की श्रद्धांजलि

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत कई नेताओं ने संविधान सदन में नेताजी को श्रद्धा-सुमन अर्पित किए। सभी ने नेताजी के अविस्मरणीय योगदान की सराहना की और उन्हें भारत माता का एक महान सपूत बताया।

पराक्रम दिवस का इतिहास और महत्व

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को कटक, ओडिशा में हुआ था। उनकी साहसिकता और देशभक्ति ने उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख चेहरा बनाया। आज़ाद हिंद फ़ौज के संस्थापक नेताजी ने “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा” जैसे नारों से लाखों भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।

2021 में, भारत सरकार ने उनके जन्मदिन को ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में घोषित किया। इसका उद्देश्य उनकी बहादुरी और देशप्रेम की भावना को श्रद्धांजलि देना और युवाओं को प्रेरित करना है। पहला पराक्रम दिवस कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हॉल में आयोजित हुआ था, जबकि 2022 में इंडिया गेट पर नेताजी की एक होलोग्राफिक प्रतिमा का अनावरण किया गया।

युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत

पराक्रम दिवस नागरिकों, विशेषकर युवाओं को नेताजी के आदर्शों पर चलने के लिए प्रेरित करता है। उनका अदम्य साहस और दृढ़ता आज भी भारतीयों को अपने लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्ध रहने की सीख देता है। नेताजी का सपना था एक स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और सशक्त भारत, जिसकी प्राप्ति के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 128वीं जयंती पर पराक्रम दिवस ने पूरे देश को उनकी महानता की याद दिलाई। यह दिन उनके अमूल्य योगदान को सम्मानित करने और उनकी प्रेरणा से भरे सपनों के भारत को साकार करने की ओर कदम बढ़ाने का संकल्प दोहराने का अवसर है।