केंद्रीय मंत्री का दावा: ‘भारत दुनिया में ग्रीनहाउस गैस का तीसरा या चौथा सबसे बड़ा उत्सर्जक’

गांधीनगर:  गांधीनगर में आयोजित वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा निवेशक सम्मेलन और एक्सपो में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने देश की कार्बन उत्सर्जन स्थिति पर एक महत्वपूर्ण बयान दिया। उन्होंने कहा कि भारत को दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों के तीसरे या चौथे सबसे बड़े उत्सर्जक के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसके प्रति व्यक्ति उत्सर्जन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। यादव ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि भारत में विश्व की 17% आबादी रहती है, लेकिन इसका वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में योगदान 5% से भी कम है। इसके विपरीत, विकसित देशों की 17% आबादी वैश्विक उत्सर्जन का 60% उत्सर्जित करती है।

मंत्री यादव ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत का कुल (संचयी) कार्बन उत्सर्जन भले ही दुनिया में तीसरे या चौथे स्थान पर हो, लेकिन प्रति व्यक्ति आधार पर भारत का योगदान बहुत कम है। उन्होंने इसे विकसित और विकासशील देशों के बीच जलवायु परिवर्तन की जिम्मेदारियों को विभाजित करने के महत्वपूर्ण सिद्धांत से जोड़ा। यह सिद्धांत “साझा लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों” का समर्थन करता है, जो यह मानता है कि जबकि सभी देशों को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए, ऐतिहासिक रूप से विकसित देशों ने अधिक उत्सर्जन किया है, और उनके पास इस समस्या से निपटने के लिए अधिक वित्तीय और तकनीकी संसाधन उपलब्ध हैं।

यादव ने यह भी बताया कि विकासशील देशों, विशेष रूप से भारत, की अभी भी महत्वपूर्ण विकास संबंधी जरूरतें हैं, जिनमें गरीबी उन्मूलन, बुनियादी ढांचे का विकास, और आर्थिक विकास शामिल हैं। इसके लिए निकट भविष्य में जीवाश्म ईंधन का उपयोग आवश्यक हो सकता है। उन्होंने कहा कि भारत इस बात की वकालत करता है कि स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर बदलाव के लिए अधिक समय और समर्थन दिया जाए, ताकि विकासशील देश अपने नागरिकों की आवश्यकताओं को पूरा कर सकें और साथ ही जलवायु परिवर्तन से निपटने में अपना योगदान दे सकें।

भारत, यादव के अनुसार, अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए एक “कम कार्बन विकास रणनीति” के साथ आगे बढ़ रहा है। भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में बड़ी प्रगति की है और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अपने प्रयासों को तेजी से बढ़ा रहा है, लेकिन इसके साथ ही वह यह सुनिश्चित कर रहा है कि विकासशील देशों के सामने आने वाली चुनौतियों को भी समझा जाए और उन्हें आवश्यक समय और संसाधन उपलब्ध कराए जाएं।

यादव के इस बयान ने विकासशील देशों की चिंताओं को जोरदार तरीके से सामने रखा है, विशेष रूप से जलवायु न्याय के सिद्धांत को रेखांकित करते हुए। उनके अनुसार, दुनिया को विकासशील देशों की वास्तविकताओं और उनकी विकास संबंधी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए एक समावेशी और न्यायसंगत दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

यादव ने यह भी कहा कि भारत अपनी आर्थिक और विकास संबंधी आवश्यकताओं के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक संतुलित दृष्टिकोण अपना रहा है, और देश नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी बनकर उभर रहा है।