1978 के संभल दंगे की दास्तान: 46 साल बाद फिर खुलेगी फाइल, नई जांच पर नजरें
संभल : उत्तर प्रदेश के संभल में 29 मार्च 1978 को हुआ दंगा राज्य के इतिहास में एक काला अध्याय बन चुका है। इस भयावह घटना में शहर जल उठा, कई घर और व्यापार बर्बाद हो गए, और सैकड़ों परिवार विस्थापित हो गए। राजनीतिक और सामुदायिक तनाव के इस ज्वालामुखी ने शहर की तस्वीर बदल दी थी। उत्तर प्रदेश सरकार ने अब इस दंगे से जुड़े मामलों की फाइलें फिर से खोलने का निर्णय लिया है और सात दिनों के भीतर प्रशासन और पुलिस से जांच रिपोर्ट मांगी गई है।
घटनाओं का सिलसिला: मस्जिद के इमाम की हत्या से शुरू हुआ तनाव
1976 में एक मस्जिद के इमाम की हत्या से शुरू हुए तनाव ने संभल की सामुदायिक स्थिति को जर्जर कर दिया था। प्रशासन के प्रयासों से उस समय हालात काबू में आ गए, लेकिन आपसी अविश्वास और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने आग में घी डालने का काम किया। मुस्लिम लीग के एक स्थानीय नेता ने 1978 में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए व्यापारियों पर बाजार बंद करने का दबाव बनाया। दूसरे समुदाय के व्यापारियों ने इसका विरोध किया और इसके बाद तनाव ने हिंसक रूप ले लिया।
अफवाहों से भड़की आग:
मारपीट के दौरान मुस्लिम लीग के उस नेता के समर्थकों ने यह अफवाह फैलाई कि नेता की हत्या हो गई है। इस झूठ ने पूरे शहर को जला डालने वाली हिंसा की नींव रख दी। दुकानें लूटी जाने लगीं, संपत्तियों को आग के हवाले कर दिया गया, और दोनों समुदायों के बीच व्यापक हिंसा भड़क उठी।
शहर की तबाही और प्रशासन की विफलता
29 मार्च को दंगे की शुरुआत के तुरंत बाद शहर में हिंसा इतनी तेज़ी से फैली कि प्रशासन को स्थिति संभालने के लिए कर्फ्यू लगाना पड़ा। लेकिन हालात इतने खराब थे कि यह कर्फ्यू करीब दो महीने तक जारी रहा। दंगे के दौरान 40 से अधिक रस्तोगी परिवार भय और असुरक्षा के कारण अपना घर छोड़कर भागने को मजबूर हुए।
शहर में एक मंदिर, जो दंगे के बाद से 46 साल तक बंद रहा, हाल ही में फिर से खोला गया। इस घटना ने उन भयावह दिनों की यादें ताजा कर दी हैं, जब हिंदू समुदाय के लोग सामूहिक पलायन के लिए मजबूर हो गए थे।
दंगे का असर और अब तक अनसुलझी रहस्यमयी गुत्थियां
1978 के दंगे में कई लोग मारे गए थे, लेकिन आज तक किसी को भी दोषी ठहराकर सजा नहीं दी गई। इस घटना से जुड़े 169 मुकदमे दर्ज किए गए थे, जिसमें से तीन एफआईआर पुलिस की ओर से की गईं। यह संख्या उन तमाम घटनाओं का प्रमाण है, जो न्यायिक प्रणाली की धीमी प्रक्रिया का शिकार हो गईं।
हाल ही में उठे मामले और सरकार की सक्रियता
दिसंबर 2024 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संभल दंगों पर चर्चा की। उन्होंने जानकारी दी कि 1947 से अब तक दंगों के चलते संभल में 209 हिंदुओं की जान जा चुकी है। इस बयान के बाद से ही सरकार ने इस मसले को गंभीरता से लेना शुरू किया।
मुख्यमंत्री के निर्देश पर प्रशासन ने संभल दंगे से जुड़ी फाइलों की फिर से जांच शुरू की है। सरकार का कहना है कि ऐसे सभी मामलों में दोषियों को सजा दिलाना आवश्यक है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
दंगे की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण
1978 का यह दंगा उस समय के राजनीतिक माहौल और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का परिणाम था। सांप्रदायिक ताकतों और राजनीतिक स्वार्थ ने शहर की शांति और समृद्धि पर प्रहार किया। जानकार बताते हैं कि दंगों के दौरान शहर को जलाने के पीछे किसी एक समुदाय का हाथ नहीं था; यह दोनों तरफ के चरमपंथ का परिणाम था।
सरकार की चुनौती और जनता की उम्मीदें
46 साल बाद सरकार का यह कदम उन परिवारों के लिए उम्मीद की किरण है, जिन्होंने इस त्रासदी में अपनों को खोया। हालांकि, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रशासन और पुलिस कितनी निष्पक्षता और प्रभावी तरीके से इन मामलों की जांच करती है।
संभल का भविष्य और नई शुरुआत की ओर
समय बीत चुका है, लेकिन संभल आज भी उन घावों को महसूस करता है। सरकार की यह पहल शहर के लिए नए विश्वास की नींव रख सकती है। साथ ही, यह भी उम्मीद है कि ऐसी घटनाओं को इतिहास के पन्नों में दफन करके संभल भविष्य में सद्भाव और प्रगति की ओर बढ़े।