“दक्षिण कोरिया: पूर्व राष्ट्रपति यून सुक येओल ने मार्शल लॉ पर उठे सवालों का दिया जवाब, हिरासत के बाद पहली बार अदालत में पेश”
सियोल: दक्षिण कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति यून सुक येओल ने मार्शल लॉ की अल्पकालिक घोषणा को लेकर उपजे विवाद के बीच पहली बार सार्वजनिक रूप से अदालत में पेश होकर अपना बचाव किया। यह कदम तब उठाया गया, जब देश इस मामले के कारण राजनीतिक अस्थिरता और उथल-पुथल का सामना कर रहा है। राष्ट्रपति पद से हटने के बाद यून सुक येओल पर महाभियोग चलाया जा रहा है और उन्हें सेना द्वारा सांसदों को नेशनल असेंबली से बाहर निकालने के आदेश देने का आरोप है।
मंगलवार को संवैधानिक न्यायालय में सुनवाई के दौरान यून सुक येओल ने जोर देकर कहा कि उन्होंने कभी भी नेशनल असेंबली में सैन्य हस्तक्षेप का आदेश नहीं दिया। उन्होंने अदालत में दावा किया कि मार्शल लॉ को लागू करना उस समय एक अनिवार्य कदम था, जिससे देश के सुरक्षा और स्थिरता को बनाए रखा जा सके। उनके वकीलों ने यह भी दलील दी कि उनके इस निर्णय का उद्देश्य आपातकालीन परिस्थितियों से निपटना और संवैधानिक संस्थाओं को सुरक्षित रखना था।
यह मामला तब शुरू हुआ, जब पिछले महीने यून सुक येओल के मार्शल लॉ की घोषणा के खिलाफ नेशनल असेंबली में मतदान की तैयारी चल रही थी। उस समय, उन पर यह आरोप लगा कि उन्होंने जानबूझकर सैन्य हस्तक्षेप के जरिए सांसदों को मतदान से रोका। आरोपों के अनुसार, उन्होंने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित करने और अपने आदेशों को लागू कराने के लिए सेना का सहारा लिया।
इस प्रकरण ने देशभर में तीव्र राजनीतिक बहस छेड़ दी है, जिससे यून सुक येओल के समर्थक और विरोधी आमने-सामने हैं। समर्थकों का मानना है कि उनका फैसला देश की सुरक्षा और स्थिरता के हित में लिया गया था, जबकि विरोधियों का कहना है कि यह कदम सत्ता के दुरुपयोग और लोकतंत्र के खिलाफ था। संवैधानिक न्यायालय की इस सुनवाई में उनके राजनीतिक करियर और देश के भविष्य पर बड़ा असर पड़ने की संभावना है।
इस मामले की सुनवाई के साथ-साथ पूरे दक्षिण कोरिया में यह चर्चा का प्रमुख विषय बना हुआ है। देश में लोकतंत्र और संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा पर एक बार फिर गहरा प्रश्नचिन्ह लग गया है, और यह देखना बाकी है कि संवैधानिक न्यायालय का फैसला किस दिशा में जाता है।