सुप्रीम कोर्ट में फिर से गरमाया रणजीत सिंह हत्याकांड: राम रहीम और अन्य आरोपियों के खिलाफ सीबीआई की चुनौती
नई दिल्ली: 10 जुलाई 2002 को सिरसा डेरे के प्रबंधक रणजीत सिंह की हत्या ने समूचे देश को चौंका दिया था, जब अज्ञात हमलावरों ने उन्हें गोलियों से भून दिया। यह मामला बेहद हाई-प्रोफाइल हो गया, और कई सालों तक इसके पेंच नहीं सुलझ सके। 2003 में यह मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई, और अधिकारियों ने अपनी जांच के बाद डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को आरोपी ठहराया। बाद में, सीबीआई कोर्ट ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई, लेकिन मामले में कई मोड़ आ रहे थे और इसे लेकर विवाद बढ़ता गया।
मई 2024 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने राम रहीम को बरी करते हुए उसे सजा से मुक्त कर दिया, हालांकि सीबीआई ने इसे चुनौती दी। कोर्ट ने यह कहते हुए राम रहीम को बरी कर दिया कि जब शस्त्रागार से एक गन गायब होने का आरोप था, तो साबित नहीं हो सका कि वह गन हत्याकांड में इस्तेमाल की गई। इसके अतिरिक्त, जिन गवाहों ने दावा किया था कि चार लोग गोली चला रहे थे, उन्हें लेकर भी कोर्ट को संदेह था। इसी संदर्भ में, हाईकोर्ट ने यह निर्णय दिया कि जांच में गंभीर खामियां थीं और सबूत अपर्याप्त थे।
अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में नए मोड़ का संकेत दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम और अन्य चार आरोपियों को नोटिस जारी किया है। यह मामला उच्चतम न्यायालय में नए सिरे से गर्माया है। सीबीआई ने इस फैसले को चुनौती दी है, यह कहते हुए कि उच्च न्यायालय ने सही तरीके से तथ्यों का आकलन नहीं किया।
रणजीत सिंह के बेटे, जगसीर सिंह, जिन्होंने इस हत्याकांड के बाद अपनी आवाज उठाई थी और जो पुलिस जांच से असंतुष्ट थे, ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सीबीआई से मामले की नई जांच की मांग की थी। हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने जांच शुरू की और 2006 में राम रहीम और अन्य चार आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया। बाद में, राम रहीम के ड्राइवर खट्टा सिंह के बयान के आधार पर उनके खिलाफ साक्ष्य जुटाए गए, जिससे उनका नाम इस हत्याकांड में जुड़ा।
यह मामला इस समय चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि हत्याकांड की गहराई में छिपे राज और राजनीतिक जोड़-तोड़ की आशंका जताई जा रही है। इसके अलावा, यह मामले न्यायपालिका के द्वारा किए गए फैसलों और जांच एजेंसियों की भूमिका पर भी सवाल खड़े करता है। सीबीआई और सरकार के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण मुद्दा साबित हो सकता है, क्योंकि अब सुप्रीम कोर्ट में यह स्पष्ट होना बाकी है कि आखिरकार राम रहीम और अन्य आरोपी कितने अपराधी हैं, और क्या उन्हें सजा दिलवाई जा सकती है।