“महाकुंभ 2025: आध्यात्मिक जागरण से राष्ट्रीय एकता तक, पीएम मोदी ने किया युग परिवर्तन के संकेतों का उल्लेख”

नई दिल्ली :  प्रयागराज में संपन्न हुआ महाकुंभ 2025 केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक चेतना का एक भव्य प्रतिबिंब था। 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चले इस दिव्य आयोजन में 66 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई, जो विश्व में अपने आप में एक अनूठी और ऐतिहासिक घटना बन गई। इस महाकुंभ ने न केवल भारत की धार्मिक शक्ति को उजागर किया, बल्कि राष्ट्रीय एकता, सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक उत्थान का भी एक सशक्त संदेश दिया।

महाकुंभ 2025: एक अभूतपूर्व आध्यात्मिक यात्रा

महाकुंभ की परंपरा भारतीय संस्कृति की आत्मा में बसी हुई है। यह केवल एक धार्मिक मेला नहीं, बल्कि भारत के आत्मबोध, दर्शन और राष्ट्रीय चेतना का केंद्र रहा है। हर 12 वर्षों में आयोजित होने वाला यह महापर्व समाज के नैतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों की पुनर्स्थापना का मंच होता है। इस बार 144 वर्षों बाद महाकुंभ के आयोजन ने एक नई ऐतिहासिक चेतना को जन्म दिया। यह आयोजन केवल पवित्र गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर स्नान करने तक सीमित नहीं था, बल्कि यह आध्यात्मिकता, ज्ञान, संस्कार और सेवा का महासंगम था, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से आए संत-महात्माओं, विद्वानों, आचार्यों और श्रद्धालुओं ने भाग लिया।

प्रधानमंत्री मोदी की भावनाएं: महाकुंभ एकता का महायज्ञ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकुंभ के समापन पर इसे भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक शक्ति का परिचायक बताया। उन्होंने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा:

“महाकुंभ संपन्न हुआ… एकता का महायज्ञ संपन्न हुआ। प्रयागराज में एकता के इस महाकुंभ में पूरे 45 दिनों तक 140 करोड़ देशवासियों की आस्था का जो महासंगम देखने को मिला, वह अभिभूत करने वाला है।”

पीएम मोदी ने आगे कहा कि जब कोई राष्ट्र अपनी जड़ों से जुड़ता है, अपने गौरवशाली इतिहास से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ता है, तब वह एक नई ऊर्जा और चेतना से भर जाता है। महाकुंभ 2025 उसी नवजागरण का प्रतीक बना। उन्होंने लिखा:

“जब एक राष्ट्र की चेतना जागृत होती है, जब वो सैकड़ों वर्षों की गुलामी की मानसिकता से बाहर निकलकर आत्मगौरव के साथ भविष्य की ओर अग्रसर होता है, तब ऐसा ही दृश्य उपस्थित होता है, जैसा हमने प्रयागराज में देखा। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि राष्ट्र की सांस्कृतिक शक्ति का जागरण था।”