झोपड़ी में जलकर राख हुए मासूम सपने: दमोह में आलू उबालने के दौरान हादसे ने ली दो बच्चियों की जान

 दमोह:  मध्य प्रदेश के दमोह जिले में एक दर्दनाक घटना के दौरान दो मासूम बच्चियों की झोपड़ी में आग लगने से मौत हो गई और एक गंभीर रूप से घायल हो गई। घटना बुधवार को हुई, जब गोविंद आदिवासी का परिवार अपनी झोपड़ी के भीतर आलू उबालने का काम कर रहा था। इस त्रासदी में उनकी तीन बेटियां आग की चपेट में आ गईं। इनमें से जाह्नवी (3), कीर्ति (2), और मालती (6 महीने) के नाम हैं।

घटना का विवरण

दमोह के जिला मजिस्ट्रेट सुधीर कोचर ने मीडिया को बताया कि यह घटना गोविंद आदिवासी के परिवार के लिए अत्यंत हृदयविदारक रही। गोविंद और उनका परिवार खिलन सिंह राजपूत की जमीन पर खेत की रखवाली के लिए मजदूरी करता था और एक घास-फूस की बनी झोपड़ी में रहते थे। झोपड़ी के अंदर खाना बनाने के दौरान आग अचानक फैल गई, जिससे तीनों बच्चियां झुलस गईं।

घटना के समय, सबसे पहले झोपड़ी में जाह्नवी आग की चपेट में आई। उसे बचाने के लिए उसकी दोनों छोटी बहनें झोपड़ी के अंदर भागीं, लेकिन दुर्भाग्यवश वे भी आग की लपटों में घिर गईं।

अस्पताल और चिकित्सा उपचार

घटना के बाद, तीनों बच्चियों को तत्काल दमोह जिला अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल के आरएमओ, डॉ. चक्रेश कुमार ने बताया कि तीनों बच्चियां लगभग 100 प्रतिशत तक जल चुकी थीं। हालांकि, दो बच्चियों ने गंभीर चोटों के चलते दम तोड़ दिया, जबकि तीसरी बच्ची की हालत अभी भी नाजुक है। उसे ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है और उसकी जान बचाने की हरसंभव कोशिश की जा रही है। डॉक्टरों ने गंभीर स्थिति को देखते हुए उसे हायर सेंटर रेफर करने की सिफारिश की है।

प्रशासन और मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया

घटना की जानकारी मिलते ही जिला प्रशासन हरकत में आया। डीएम कोचर ने बताया कि यह घटना न केवल परिवार के लिए, बल्कि पूरे इलाके के लिए दुखद है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने घटना पर गहरा शोक व्यक्त किया और मृतक बच्चियों के परिजनों को राहत पहुंचाने के लिए कदम उठाए। मुख्यमंत्री ने प्रत्येक मृत बच्ची के परिजनों को 2-2 लाख रुपये की अनुग्रह राशि और घायल बच्ची के इलाज के लिए 1 लाख रुपये की सहायता देने की घोषणा की।

परिवार का संघर्ष

गोविंद आदिवासी का परिवार अत्यंत गरीबी में जीवन-यापन कर रहा है। फसल की रखवाली और खेतों में मजदूरी के बदले उन्हें रहने के लिए झोपड़ी दी गई थी। घटना ने उनके परिवार को पूरी तरह टूटने पर मजबूर कर दिया है। इस हादसे ने न केवल उनकी तीन मासूम बेटियों की जिंदगी छीन ली, बल्कि उनके सपनों और संघर्षों को भी झकझोर कर रख दिया है।

जनहित के सवाल

यह घटना एक बार फिर घास-फूस से बनी झोपड़ियों में रहने वाले गरीब परिवारों की सुरक्षा को लेकर बड़े सवाल खड़े करती है। क्या इन्हें सुरक्षित घर और मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराना प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है? जलने का कारण पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह बात स्पष्ट है कि गरीबों की जिंदगी एक अदृश्य खतरे के साये में रहती है।

इस दुखद घटना ने सभी को झकझोर दिया है, और इसे केवल एक हादसे के तौर पर देखना पर्याप्त नहीं होगा। यह ज़रूरी है कि इस त्रासदी से सबक लेते हुए सरकार और समाज मिलकर गरीबों को सुरक्षित आवास और जीवन जीने की बेहतर सुविधाएं प्रदान करें।