“सपा और कांग्रेस के बीच बढ़ती खाई: उपचुनाव में सीटों को लेकर संघर्ष और राजनीतिक चिंताएं”
लखनऊ: लोकसभा चुनाव में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन करने के बावजूद, समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस के नेताओं के बीच गठबंधन को लेकर खटास बढ़ती जा रही है। अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जोड़ी अब सियासी मैदान में एकजुटता नहीं दिखा रही है। हरियाणा और जम्मू में इंडी गठबंधन से सीट मिलने की संभावनाएं नकारात्मक जवाब मिलने के बाद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव काफी निराश हैं। इससे आगामी उपचुनाव में उनकी पार्टी कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में कोई भी सीट देने के पक्ष में नहीं है।
सूत्रों के अनुसार, सपा ने यह निर्णय लिया है कि विधानसभा की 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में वह कांग्रेस को एक सीट से अधिक नहीं देगी। हरियाणा में भी कांग्रेस ने सपा को कोई सीट नहीं दी, जबकि अखिलेश यादव ने गठबंधन की एकता और भाजपा को हराने के लिए अपनी हरियाणा यूनिट को चुनाव में नहीं लड़ने का निर्देश दिया था। जम्मू-कश्मीर में भी कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन ने सपा को एक भी सीट नहीं दी, जबकि सपा ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ने का साहस दिखाया था।
इस स्थिति ने अखिलेश यादव को असुविधा में डाल दिया है। उनके लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि अगर यूपी में कांग्रेस मजबूत हो जाती है, तो उनकी पार्टी को नुकसान होगा। दरअसल, सपा और कांग्रेस दोनों के वोट बैंक में जातिगत समीकरण एक समान हैं, जिससे सपा को यह डर सताता है कि अगर कांग्रेस का वोट बैंक बढ़ता है तो सपा की स्थिति कमजोर हो सकती है।
लोकसभा चुनाव के परिणामों ने यह साबित किया कि कांग्रेस के जीते सांसदों ने अपेक्षाकृत बड़े अंतर से जीत हासिल की, जबकि सपा के प्रत्याशियों ने कुछ सीटों पर कम अंतर से जीत दर्ज की। इससे यह स्पष्ट होता है कि सपा का वोट कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो गया था। अगर उपचुनाव में कांग्रेस को समान सीटें दी जाती हैं, तो इससे कांग्रेस को फायदा होना तय है, जबकि सपा का प्रदर्शन कमजोर पड़ सकता है। इस प्रकार, सपा और कांग्रेस के बीच यह राजनीतिक संघर्ष दोनों पार्टियों के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण बन गया है, और यह देखना होगा कि आगे चलकर इन नेताओं के बीच की यह खाई कैसे भरती है।