“छठ पूजा: जाने इस महापर्व की कथा, महत्व और इसकी आरंभिक परंपराएँ”

छठ पूजा, जिसे विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है, यह एक प्राचीन और लोकप्रिय हिंदू त्योहार है। यह त्योहार चार दिन तक मनाया जाता है, और इसमें सूर्य देवता और उनकी बहन छठी मैया की पूजा की जाती है। यह पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तक होती है, जो आमतौर पर अक्टूबर-नवंबर के बीच आती है।

पूजा का महत्व

छठ पूजा का महत्व सूर्य देवता को समर्पित है, जो जीवन, स्वास्थ्य और समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। मान्यता है कि इस पूजा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं, और भक्तों के परिवार में सुख, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का संचार होता है। यह पर्व विशेष रूप से कृषि प्रधान समाज में अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि सूर्य की किरणें फसलों के लिए आवश्यक होती हैं।

पूजा की परंपरा

छठ पूजा की शुरुआत विधिपूर्वक चार दिनों तक होती है। पहले दिन को ‘नहाय-खाय’ कहा जाता है, जिसमें भक्त एक विशेष स्नान करते हैं और मिट्टी से बने बर्तन में अपने लिए भोजन तैयार करते हैं। दूसरे दिन को ‘खरना’ कहते हैं, जिसमें व्रति दिनभर उपवासी रहती हैं और शाम को खीर और रोटी का भोग बनाती हैं।

तीसरे दिन ‘संध्या अर्घ्य’ में सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है, और इस अवसर पर विशेष रूप से तैयार किए गए भोग का प्रसाद किया जाता है। चौथे और अंतिम दिन ‘प्रातः अर्घ्य’ में फिर से सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है और इस दिन पूजा समाप्त होती है।

पूजा का आरंभ

छठ पूजा की शुरुआत के बारे में कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि यह पूजा ‘सूर्य देव’ की कृपा पाने और ‘छठी मैया’ के आशीर्वाद से प्रारंभ हुई थी। कुछ मान्यताओं के अनुसार, यह पूजा महाभारत काल में पांडवों द्वारा की गई थी, जब उन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति और सामर्थ्य खो दी थी। इसके बाद उन्होंने सूर्य देव की कृपा से पुनः समृद्धि प्राप्त की।

कई लोग मानते हैं कि छठ पूजा का आरंभ राजा पर्वत के द्वारा हुआ था, जिन्होंने अपने पुत्र की दीर्घायु के लिए इस पूजा को संपन्न किया था। यह भी कहा जाता है कि देवी सती के श्राप के कारण छठ पूजा की शुरुआत हुई थी, जिससे उन्हें सूर्य देवता की पूजा करने की प्रेरणा मिली।

निष्कर्ष

छठ पूजा एक अद्वितीय धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है, जो न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि पर्यावरण और प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी को भी दर्शाता है। यह पर्व समाज में एकता और सहयोग की भावना को बढ़ावा देता है, और यह भारतीय संस्कृति की धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।