मराठा कुनबी प्रमाणपत्र मुद्दे पर बड़ा कदम: महाराष्ट्र सरकार ने न्यायमूर्ति संदीप शिंदे समिति के कार्यकाल को 2025 तक बढ़ाने का किया फैसला

 मुंबई:  महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है, क्योंकि राज्य सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति संदीप शिंदे समिति के कार्यकाल को 30 जून 2025 तक बढ़ाने का आदेश जारी किया है। यह समिति मराठा समुदाय के सदस्यों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया निर्धारित करने के लिए गठित की गई थी। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार ने इस समिति की नियुक्ति सितंबर 2023 में की थी, ताकि मराठा समुदाय के लोगों को कुनबी प्रमाण पत्र देने की संभावनाओं पर अध्ययन किया जा सके।

समिति के कार्यकाल में छह महीने का विस्तार

सरकार के इस नए आदेश के अनुसार, समिति का कार्यकाल 31 दिसंबर 2024 को समाप्त होने के बाद छह महीने के लिए और बढ़ा दिया गया है, जिससे अब यह 30 जून 2025 तक कार्यरत रहेगी। इस विस्तार से स्पष्ट है कि महाराष्ट्र सरकार मराठा समुदाय की मांगों और आरक्षण से जुड़ी प्रक्रियाओं पर गंभीरता से काम कर रही है।

मराठा-कुनबी मुद्दे की पृष्ठभूमि

महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को ओबीसी आरक्षण का लाभ दिलाने की मांग लंबे समय से उठती रही है। मनोज जरांगे के नेतृत्व में हुए एक व्यापक आंदोलन के बाद इस समिति का गठन किया गया था। इस आंदोलन में मराठा समुदाय के लोगों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र देने की मांग की गई थी, जिससे वे ओबीसी श्रेणी में आ सकें और सरकारी नौकरियों व शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण का लाभ उठा सकें।

गौरतलब है कि कुनबी महाराष्ट्र का एक पारंपरिक कृषक समुदाय है, जिसे पहले से ही ओबीसी वर्ग में शामिल किया गया है। हालांकि, राज्य के ओबीसी नेताओं ने इस प्रक्रिया का विरोध किया है। उनका मानना है कि यदि मराठों को कुनबी प्रमाण पत्र दिया जाता है, तो इससे उनके समुदायों के लिए पहले से तय आरक्षण प्रभावित होगा और उनके लिए अवसरों की संख्या घट जाएगी।

समिति का अध्ययन और प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया

सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति संदीप शिंदे समिति को हैदराबाद और बॉम्बे राज्यों के अभिलेखों का गहन अध्ययन करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इन ऐतिहासिक दस्तावेजों में मराठा समुदाय के लोगों को कुनबी के रूप में संदर्भित किया गया है। शुरुआत में इस समिति को केवल मराठवाड़ा क्षेत्र के लिए बनाया गया था, लेकिन बाद में इसका दायरा पूरे महाराष्ट्र में विस्तारित कर दिया गया।

सरकार ने मराठा व्यक्ति के रक्त संबंधियों (Blood Relatives) को भी कुनबी के रूप में मान्यता देने का निर्णय लिया है, बशर्ते वे अपने कुनबी मूल के प्रमाण प्रस्तुत कर सकें।

राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव

मराठा-कुनबी प्रमाण पत्र का मुद्दा न केवल राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह महाराष्ट्र की सामाजिक संरचना पर भी गहरा प्रभाव डाल सकता है। राज्य सरकार के इस निर्णय से स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि आने वाले दिनों में मराठा आरक्षण को लेकर बड़े बदलाव संभव हैं।

सरकार का यह कदम आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों को देखते हुए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि मराठा समुदाय महाराष्ट्र की राजनीति में एक प्रभावशाली भूमिका निभाता है। वहीं, ओबीसी नेताओं का विरोध इस प्रक्रिया को और जटिल बना सकता है।