भाई दूज का त्यौहार: भाई-बहन के पवित्र बंधन का अनोखा उत्सव और उसकी रोचक कहानी
भाई दूज का पर्व भारतीय संस्कृति में भाई-बहन के स्नेह और अटूट बंधन का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और सुरक्षा की कामना करती हैं। दीपावली के दो दिन बाद मनाया जाने वाला यह त्यौहार रक्षाबंधन की तरह भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता को उजागर करता है। इस पर्व की प्रथा सदियों से चली आ रही है और इसके पीछे कई ऐतिहासिक और धार्मिक कहानियाँ हैं।
भाई दूज की शुरुआत और कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भाई दूज की शुरुआत यमराज और उनकी बहन यमुनाजी से मानी जाती है। एक कथा के अनुसार, यमराज अपनी बहन यमुनाजी से मिलने उनके घर गए। यमुनाजी ने अपने भाई का स्वागत किया, उन्हें तिलक लगाया, मिठाई खिलाई, और उनकी लंबी उम्र की कामना की। यमराज ने इस प्रेम और सेवा से प्रसन्न होकर यमुनाजी से वरदान मांगने को कहा। यमुनाजी ने यह वरदान मांगा कि इस दिन बहन जो भी अपने भाई को प्रेमपूर्वक तिलक करके भोजन कराएगी, उसके भाई की उम्र लंबी होगी और यमराज का भय उससे दूर रहेगा। तभी से भाई दूज का यह पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है।
भाई दूज का महत्व
भाई दूज के दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक करती हैं, आरती उतारती हैं और उनकी कुशलता और सुरक्षा की कामना करती हैं। बदले में भाई अपनी बहन को उपहार देते हैं और जीवन भर उनकी रक्षा का वचन देते हैं। इसे रक्षाबंधन की तरह ही महत्वपूर्ण माना गया है, लेकिन भाई दूज में तिलक का अनोखा महत्व होता है, जो यमराज और यमुनाजी के पवित्र प्रेम का प्रतीक है। इस दिन को “भाई बीज” या “यम द्वितीया” भी कहा जाता है, और यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत में बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भाई दूज
भाई दूज न केवल धार्मिक रूप से, बल्कि समाजिक रूप से भी भाई-बहन के रिश्ते की ताकत और सम्मान को दिखाता है। इस दिन भाई-बहन के बीच के अटूट बंधन को मनाने के साथ-साथ समाज में उनके रिश्ते का आदान-प्रदान होता है। समाज में भाई दूज के माध्यम से यह संदेश दिया जाता है कि बहनें अपने भाइयों के जीवन के लिए शुभकामनाएं करें और भाई हमेशा अपनी बहनों की रक्षा के लिए संकल्पबद्ध रहें।
इस प्रकार, भाई दूज का पर्व भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो सदियों से भाई-बहन के स्नेह और प्रेम को प्रकट करता है।