“नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परपोते का प्रधानमंत्री को पत्र: जापान से अवशेष वापस लाने और दिल्ली में स्मारक बनाने का अनुरोध”

कोलकाता:  नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परपोते चंद्र कुमार बोस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक अत्यंत महत्वपूर्ण अनुरोध किया है। उन्होंने 8 नवंबर को प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर आग्रह किया कि नेताजी के अवशेषों को जापान के रेनकोजी मंदिर से भारत लाया जाए और उनके सम्मान में दिल्ली के कर्तव्य पथ पर एक स्मारक स्थापित किया जाए। चंद्र कुमार बोस ने पत्र में यह भी उल्लेख किया कि नेताजी की मृत्यु को लेकर अब तक चल रही भ्रांतियों और अनिश्चितताओं के बीच सरकार को इस विषय पर एक स्पष्ट और अंतिम बयान जारी करना चाहिए, जिससे राष्ट्र के इस महान स्वतंत्रता सेनानी के योगदान और बलिदान को सही मायने में सम्मानित किया जा सके।

चंद्र कुमार बोस ने अपने पत्र में लिखा, “नेताजी का अवशेष जापान में एक विदेशी भूमि पर पड़ा है, और यह भारत के लिए एक बड़ा अपमान है। नेताजी ने भारत की आजादी के लिए अपनी जान दी, और यह अनिवार्य है कि उनके अवशेष उनके जन्मभूमि में वापस लाए जाएं।” उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को हुई थी, और इस मुद्दे पर पहले ही विभिन्न जांच आयोगों द्वारा विभिन्न निष्कर्षों को सामने लाया गया था, जिन्हें अब भारत सरकार द्वारा स्वीकार किया गया है।

पत्र में उन्होंने सरकार की ओर से उठाए गए कदमों की सराहना की, जैसे नेताजी से संबंधित फाइलों को सार्वजनिक करना, और इस बात पर जोर दिया कि यह अब समय आ गया है कि भारत सरकार नेताजी के निधन के संदर्भ में एक अंतिम और स्पष्ट बयान जारी करे। उनके मुताबिक, अब तक जो भी झूठी धारणाएं और भ्रम फैलाए गए थे, उन्हें समाप्त करने की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को नेताजी के वास्तविक योगदान के बारे में पूरी जानकारी मिल सके।

इसके अलावा, चंद्र कुमार बोस ने प्रधानमंत्री से यह भी अनुरोध किया कि नेताजी की याद में दिल्ली में एक स्मारक बनाया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियां उनकी वीरता और संघर्ष को सच्चे सम्मान के साथ याद कर सकें। उनका मानना है कि यह कदम न केवल नेताजी के योगदान को सम्मानित करेगा, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा देने वाली इस महान शख्सियत को भी उचित श्रद्धांजलि देगा।

इस पत्र से यह स्पष्ट होता है कि चंद्र कुमार बोस केवल नेताजी के अवशेषों के भारत लौटने को लेकर चिंतित नहीं हैं, बल्कि वह यह भी चाहते हैं कि नेताजी के जीवन और मृत्यु को लेकर अब कोई भ्रम न रहे और उनकी छवि को सही रूप में सम्मानित किया जाए।