कपिल सिब्बल की तीखी प्रतिक्रिया: मोहन भागवत के विजयादशमी बयान पर राजनीतिक विवाद गहराया
विजयादशमी के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत के बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने भी भागवत के विचारों की आलोचना की है। सिब्बल ने भागवत के बयान पर कटाक्ष करते हुए कहा कि “सभी त्योहार एक साथ मनाए जाने चाहिए,” यह सुझाव देते हुए कि विविधता में भी एकता होनी चाहिए। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या इस संदेश का कोई असर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या अन्य नेताओं पर पड़ेगा।
मोहन भागवत ने अपने भाषण में कहा था कि एक स्वस्थ और सक्षम समाज के लिए सामाजिक सद्भाव और आपसी सामंजस्य की आवश्यकता है। उनका यह भी कहना था कि यह कार्य केवल प्रतीकात्मक कार्यक्रमों से संभव नहीं है, बल्कि व्यक्तिगत और पारिवारिक स्तर पर सौहार्द विकसित करने की आवश्यकता है। भागवत ने सांस्कृतिक एकता की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हुए डीप स्टेट, वोकिज्म, और सांस्कृतिक मार्क्सवाद जैसे तत्वों से उत्पन्न खतरों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि ये तत्व मूल्यों और परंपराओं का विनाश करने के लिए प्रयासरत हैं और समाज की संस्थाओं पर नियंत्रण प्राप्त करना इनका प्राथमिक लक्ष्य है।
कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने भी भागवत के बयान को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि आरएसएस एक ऐसी पार्टी का समर्थन करता है जो समाज में फूट डालने का काम करती है। उनकी इस टिप्पणी से यह स्पष्ट होता है कि वे आरएसएस के विचारों को संकीर्ण और विभाजनकारी मानते हैं।
संक्षेप में, मोहन भागवत का भाषण और उसके बाद की राजनीतिक प्रतिक्रियाएं दर्शाती हैं कि भारतीय राजनीति में सांस्कृतिक और सामाजिक मुद्दों पर गहरी अंतर्दृष्टि और बहस चल रही है। विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने दृष्टिकोण से भागवत के बयानों की व्याख्या कर रहे हैं, जिससे इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा और विवाद का माहौल उत्पन्न हो गया है। यह स्थिति न केवल भारतीय राजनीति में, बल्कि समाज में भी गहरी छाप छोड़ सकती है।