संभागायुक्त टीसी महावर की कविताओं पर केंद्रित किताब ‘कविता का नया रूपाकारÓ का लोकार्पण

कोरोना की वजह से वर्चुअल लोकार्पण हुआ, प्रख्यात कवि विनोद कुमार शुक्ल ने किया लोकार्पण

महावर की कविताओं पर देश के 30 जाने माने आलोचकों और सुधि पाठकों की प्रतिक्रियाओं का है संग्रह

इनका चयन किया सुप्रसिद्ध कथाकार शशांक ने, प्रकाशन ‘पहले पहलÓ प्रकाशन भोपाल द्वारा

राजनांदगांव 09 नवम्बर 2020। संभागायुक्त टीसी महावर की कविताओं पर केंद्रित किताब ‘कविता का नया रूपाकारÓ का लोकार्पण हिंदी कविता के सर्वाधिक महत्वपूर्ण कवि विनोद कुमार शुक्ल ने एक वर्चुअल समारोह में किया। इस पुस्तक में 30 आलोचकों, सुधि पाठकों और मित्रों की श्री महावर के कविता संग्रह पर प्रतिक्रियाओं को सम्मिलित किया गया है। इनका चयन सुप्रसिद्ध कथाकार शशांक ने किया है। किताब का प्रकाशन ‘पहले पहलÓ प्रकाशन भोपाल द्वारा किया गया है। संग्रहित गद्य को नया रूप देने में कवि कथाकार रामकुमार तिवारी की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है।

उल्लेखनीय है कि महावर के अब तक विस्मित न होना, इतना ही नमक, नदी के लिए सोचो, हिज्जे सुधारता है चांद, शब्दों से परे, इस तरह से पांच कविता संग्रह आ चुके हैं। उन्हें पंडित मदन मोहन मालवीय स्मृति पुरस्कार, नई दिल्ली, अंबिका प्रसाद दिव्य पुरस्कार तथा पंजाब कला साहित्य अकादमी राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

इस मौके पर कवि विनोद कुमार शुक्ल ने कहा कि कविताओं में स्मृतियों का लौट आना अच्छा लगता है। स्मृतियों में लौटना सामाजिकता की गहराई को प्रकट करता है। त्रिलोक महावर स्थानीयता से जुड़े हुए कवि हैं इसलिए अनेक कविताओं में स्थानीयता के बिम्ब हैं, जिसे उन्होंने एक तरह से स्थायी बना दिया है। पायली, सोली जैसे नापने की अनेक प्रचलित स्थानीय मापक घटकों का धीरे-धीरे विलुप्त हो जाना और त्रिलोक महावर की कविताओं में उन पुरानी चीजों का वापस लौट आना, मुझे प्रीतिकर लगता है।

सुप्रसिद्ध कवि तथा लेखक संजीव बख्शी ने इस अवसर पर कहा कि त्रिलोक महावर की कविताओं पर विमर्श में तीस आलोचकों ने अपनी बात कही है, जिसे इस किताब में संकलित किया गया है। ऐसा काम संभवत: यदा-कदा ही होता है कि कविताओं पर जो अपनी बात कहे उसे भी संकलित कर लिया जाए।

इस अवसर पर कवि-समीक्षक रमेश अनुपम ने कहा कि महावर की कविताओं में स्थानीयता कहीं गहरे रूप में विद्यमान है। वे कविता की दुनिया में बार-बार इसलिए भी लौटना पसंद करते हैं क्योंकि वहीं दुनिया उनकी अपनी दुनिया है। तीस सुधि पाठकों की आंख से त्रिलोक महावर की कविताओं को देखना, उससे गुजरना और उसमें कहीं-कहीं ठहर जाना मेरे लिए किसी विलक्षण अनुभव से कम नहीं है।

इस अवसर पर अपनी रचना प्रक्रिया तथा कविताओं के विषय में अपनी बात रखते हुए कविता का नया रूपाकार पर अपने विचार प्रकट करते हुए महावर ने कहा कि काव्य यात्रा की शुरूआत में बस्तर के जंगल पहाड़, नदी, झरने और आदिवासी जन-जीवन की छवियाँ मेरी कविता में सहज रूप में आई है। समय के साथ-साथ जीवन के विरल अनुभवों ने मुझे जीवन और समाज को देखने की नई दृष्टि प्रदान की। जिसके फलस्वरूप मेरी कविताओं ने समाज की अनेक प्रचलित अप्रचलित छवियों के लिए ‘स्पेसÓ निर्मित हुई। नौकरी में रहते हुए तथा अनेक स्थानों पर स्थनांतरित होते हुए जीवन, समाज और प्रकृति को अत्यंत निकट से देखने का अवसर मिला, जिसमें मेरे अनुभव संसार को समृद्ध किया है।

एक ओर मैंने जहां मनुष्य की अपराजेय जिजीविषा को देखा तो दूसरी ओर समाज की सामूहिकता से मेरा निकट का परिचय हुआ। प्रकृति के वैभव और उसके सौंदर्य ने मुझे भीतर तक अभिभूत किया तो मनुष्य की वेदना ने मुझे भीतर तक द्रवित भी किया। इस तरह के समतल तथा ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरते हुए मैंने कोशिश की कि कविता का दामन मुझसे कभी न छूटे। इस तरह कविता मेरे लिए सांस लेने की तरह मेरे जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन गई।

प्रकाशन के रूप में ‘पहले पहलÓ प्रकाशन के संपादक महेन्द्र गगन ने कहा कि श्री महावर की कविताओं में विविधता है। स्थानीयता वैश्विकता की ओर पहुंचती है। यह संकलन काफी महत्वपूर्ण है। हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि राजेश जोशी ने कहा कि ‘एक ऐसे समय में जब आकाश बादलों से भरा हुआ हो और उससे दिशा भ्रम की स्थिति बन रही हो तो त्रिलोक महावर कविता के पास लौट आते है। कविता उनके लिए विभ्रम की स्थिति प्राप्त किया गया शरण स्थल नहीं एक दिशा है।Ó हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि नरेंद्र जैन का मानना है, ‘एक साथ वैचारिक दृष्टि के लिए समकालीन कविता संसार में त्रिलोक महावर की कविताएं हमारी प्रश्नाकुलता को बढ़ाती हैं और समय की जटिलताओं को प्रश्न दर प्रश्न हमारे सामने खोलती हैं।

कविता का नया रूपाकार में जिन कवियों, आलोचकों, सुधि पाठकों, मित्रों की प्रतिक्रियाएं प्रकाशित है उनमें राजेश जोशी, नरेंद्र जैन, शशांक, भालचंद्र जोशी,  तेजिंदर, रामकुमार तिवारी, सत्यनारायण, महेश कटारे, अजीत प्रियदर्शी,अशुतोष, सुधीर सक्सेना, उमाशंकर सिंह परमार, नासिर अहमद सिकंदर, कैलाश मण्डेलकर,  शाकिर अली, पयोधि, ओम निश्चल, लालमणि तिवारी, नारायण लाल परमार, रऊफ परवेज, मदन आचार्य, सतीश कुमार सिंह, नीलोत्पल रमेश, उर्मिला आचार्य, राधेलाल विजधावने, बच्चन पाठक सलिल, राम अधीर, राघव आलोक, विजय सिंह प्रमुख है।

महावर ने इस प्रकाशन के लोकार्पण पर प्रमुख वक्ताओं और कवि आलोचकों को अपना मंतव्य प्रकट करने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया।