“श्रीलंका सरकार का बड़ा कदम: पूर्व राष्ट्रपतियों की सुरक्षा में कटौती का फैसला, विपक्ष ने किया विरोध”
कोलंबो: श्रीलंका सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए पूर्व राष्ट्रपतियों को प्रदान की जा रही अत्यधिक व्यक्तिगत सुरक्षा को घटाने का फैसला किया है, जिसका उद्देश्य देश में उच्च सार्वजनिक पदों पर तैनात व्यक्तियों को भी आम नागरिकों जैसी सुरक्षा सुविधाएं देना है। यह फैसला सरकार के बढ़ते आर्थिक दबाव और राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, जिसमें 2024 में पूर्व राष्ट्रपतियों की सुरक्षा पर 1,448 मिलियन रुपये खर्च किए गए थे। अब पूर्व राष्ट्रपतियों को दी जाने वाली सुरक्षा में 60 पुलिसकर्मी ही उपलब्ध होंगे, जबकि इससे पहले उन्हें कहीं अधिक पुलिसकर्मियों की सुरक्षा प्रदान की जाती थी।
इस कदम का मुख्य उद्देश्य देशभर में वीआईपी काफिलों और अत्यधिक सुरक्षा की प्रथा को समाप्त करना और नागरिकों की सामान्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है। श्रीलंकाई मंत्री आनंद विजेपाला ने इस निर्णय का समर्थन करते हुए कहा कि यह सरकार की नीति का हिस्सा है और यह उन उच्च पदाधिकारियों के लिए भी लागू होगा जिन्हें अब आम जनता की तरह ही सुविधाएं दी जाएंगी। उनका कहना था कि सार्वजनिक धन का संरक्षण करना और जनता पर बढ़ते आर्थिक बोझ को कम करना सरकार की प्राथमिकता है।
हालांकि, इस फैसले पर विपक्षी पार्टी श्रीलंका पोडुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। पार्टी ने इसे ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ की कार्रवाई करार देते हुए आरोप लगाया कि यह कदम विशेष रूप से महिंदा राजपक्षे और उनके शासनकाल के खिलाफ है। उनका कहना था कि पूर्व राष्ट्रपतियों को अब भी लिट्टे जैसे संगठन से खतरा है, जो कि करीब 30 वर्षों तक श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी प्रांतों में तमिल अलगाववादी संघर्ष चला रहा था।
राजपक्षे परिवार पर यह आरोप है कि उन्होंने लिट्टे पर निर्णायक विजय प्राप्त की थी, जिसका नेतृत्व वी. प्रभाकरन के पास था, जिसे 2009 में मार गिराया गया था। इस युद्ध के बाद श्रीलंका में शांति स्थापित हुई, लेकिन अब भी श्रीलंका के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में लिट्टे से जुड़ी चिंताएं और जोखिम बने हुए हैं।
यह स्थिति अब एक नए राजनीतिक विवाद का रूप ले चुकी है, जिससे सरकार के इस फैसले की व्याख्या और परिणाम को लेकर अनिश्चितताएं पैदा हो गई हैं। विपक्षी दल इस फैसले को चुनावी फायदा उठाने के रूप में देख रहे हैं, जबकि सरकार का तर्क है कि यह देश के हित और सार्वजनिक सुरक्षा के लिए एक सही कदम है।