बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा निर्देश: योगी सरकार को मनमानी पर हर्जाने की चेतावनी

उत्तर प्रदेश :  सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्शन पर एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए सरकार को कठोर दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिससे किसी आरोपी के परिवार को बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए सजा न दी जा सके। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हर अपराध की सजा घर तोड़ना नहीं हो सकती और यह कार्य केवल कानून के तहत ही किया जा सकता है। कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि सरकारी शक्ति का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए, और बिना प्रमाणित आरोपों के आधार पर किसी भी परिवार के घर को गिराने की प्रक्रिया न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह न्याय के बुनियादी सिद्धांतों के भी खिलाफ है।

मुख्य दिशा-निर्देश:

  1. नोटिस और समय सीमा: कोर्ट ने यह निर्देश दिया कि घर गिराने से पहले 15 दिन का नोटिस अनिवार्य रूप से दिया जाए। इसके बाद ही किसी प्रकार की बुलडोजर कार्रवाई की जा सकेगी, जिससे लोगों को अपनी स्थिति स्पष्ट करने का अवसर मिले।
  2. नोडल अधिकारी की नियुक्ति: प्रत्येक जिले का जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) एक नोडल अधिकारी नियुक्त करेगा, जो सुनिश्चित करेगा कि संबंधित व्यक्तियों को नोटिस समय पर मिले और उन्हें जवाब देने का उचित समय भी मिले।
  3. कार्रवाई की पारदर्शिता: सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि किसी भी प्रकार की बुलडोजर कार्रवाई की वीडियोग्राफी की जाएगी। इसके अलावा, विध्वंस की रिपोर्ट को एक डिजिटल पोर्टल पर भी सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करना अनिवार्य किया गया है, जिससे पारदर्शिता बनी रहे।
  4. कार्यपालिका और न्यायपालिका के अधिकार: कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि कार्यपालिका न्यायिक कार्य नहीं कर सकती। यह न्यायपालिका का अधिकार है कि वह दोषी या निर्दोष का निर्णय दे। कार्यपालिका को न्यायाधीश बनकर किसी की संपत्ति को ध्वस्त करने का अधिकार नहीं है।
  5. मुआवजा और कार्रवाई: यदि बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए किसी आरोपी के घर को गिराया जाता है, तो पीड़ित परिवार को मुआवजा दिया जाएगा। इसके साथ ही, मनमाने और अवैध तरीके से कार्रवाई करने वाले अधिकारियों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की जाएगी।

कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि बुलडोजर एक्शन का उपयोग कानून के भय को दिखाने के लिए नहीं किया जा सकता और इसका उपयोग केवल कानूनी प्रक्रिया के तहत होना चाहिए। कार्यपालिका को न्यायपालिका की तरह व्यवहार करने की अनुमति नहीं है, और किसी आरोपी के खिलाफ कोई भी कार्रवाई केवल आरोपों के आधार पर नहीं की जानी चाहिए।