रूस और भारत के लिए व्यापार का नया युग: जयशंकर ने रेखांकित की महत्वपूर्ण बातें
मुंबई : भारत और रूस के बीच आर्थिक संबंधों की मजबूती और द्विपक्षीय सहयोग के उद्देश्य से विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने भारत-रूस व्यापार मंच में दोनों देशों के आपसी हितों पर जोर दिया। इस व्यापार मंच में भारत और रूस के शीर्ष व्यापार और राजनीतिक नेताओं ने भाग लिया, जिसमें रूसी उप प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव और फिक्की के अध्यक्ष डॉ. अनीश शाह भी शामिल थे। जयशंकर ने भारत-रूस संबंधों में कई महत्वपूर्ण पहलुओं को रेखांकित किया और 10 प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डाला, जिन पर ध्यान देने से द्विपक्षीय व्यापार को नई ऊंचाई पर ले जाया जा सकता है।
जयशंकर ने कहा कि भारत, जो 8 प्रतिशत की विकास दर की ओर बढ़ रहा है, और रूस, जो प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अत्याधुनिक है, दोनों की अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे के लिए पूरक हो सकती हैं। वर्तमान में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 66 अरब अमेरिकी डॉलर का है, लेकिन इसे 2030 तक 100 अरब डॉलर तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उन्होंने व्यापार संतुलन को आवश्यक बताया, जो अभी काफी एकतरफा है। उन्होंने कहा कि इस असंतुलन को सुधारने के लिए गैर-टैरिफ और नियामक बाधाओं को शीघ्रता से दूर करना महत्वपूर्ण है।
इसके अलावा, विदेश मंत्री ने कहा कि भारत-यूरेशियन आर्थिक संघ के बीच वस्तुओं के व्यापार पर बातचीत मार्च 2024 से प्रारंभ हो चुकी है, और इस बातचीत को मजबूत करना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि पहला द्विपक्षीय निवेश मंच अप्रैल 2024 में मास्को में आयोजित हुआ, जिसमें दोनों देशों के व्यापार निवेश को बढ़ावा देने के मुद्दे पर चर्चा की गई। साथ ही, उन्होंने जोर दिया कि 2024-29 तक रूस के सुदूर-पूर्व क्षेत्र में सहयोग को लेकर एक कार्यक्रम पर हस्ताक्षर हुए हैं, जो कनेक्टिविटी, व्यापार और निवेश के अवसरों को बढ़ावा देगा।
जयशंकर ने इस बात पर भी जोर दिया कि वैश्विक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार का पारस्परिक निपटान भी महत्वपूर्ण है। रूस के एशिया पर अधिक फोकस करने के दृष्टिकोण को उन्होंने भारत के लिए एक बड़ा अवसर बताया और कहा कि इस सहयोग से अनेक नए आर्थिक अवसर सामने आएंगे। उन्होंने कहा कि बहुध्रुवीय दुनिया में बेहतर तालमेल के लिए नीतिगत सुधार आवश्यक हैं।
इस व्यापार मंच के आयोजन का उद्देश्य केवल आर्थिक सहयोग को बढ़ाना ही नहीं बल्कि दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को नई दिशा देना भी था। यह चर्चा कई संभावित साझेदारियों और आगामी आर्थिक परियोजनाओं की रूपरेखा प्रस्तुत करती है, जो भारत और रूस के आर्थिक संबंधों को न केवल स्थायित्व देगी, बल्कि वैश्विक स्तर पर एक मजबूत स्थिति में भी लाएगी।