पाकिस्तान संसद ने पारित किया 26वां संविधान संशोधन: जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में नवाचार

इस्लामाबाद पाकिस्तान की संसद में हाल ही में पारित 26वें संविधान संशोधन ने न्यायपालिका की संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव लाने का मार्ग प्रशस्त किया है। इस संशोधन के तहत जजों की नियुक्ति के लिए एक नई 12 सदस्यीय आयोग का गठन किया जाएगा, जिसमें मुख्य न्यायाधीश, शीर्ष अदालत के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश, दो सीनेटर और दो नेशनल असेंबली सदस्य (एमएनए) शामिल होंगे। यह संशोधन पाकिस्तान में न्यायपालिका के संचालन और जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने का उद्देश्य रखता है।

इस संशोधन को पारित करने के लिए नेशनल असेंबली में 336 सदस्यों की उपस्थिति में 225 वोट मिले, जबकि संशोधन के लिए 224 वोट की आवश्यकता थी। इसके अलावा, सीनेट में भी इसे समर्थन मिला, जहां चार के मुकाबले 65 वोट पड़े। यह संविधान संशोधन पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण मोड़ को दर्शाता है, क्योंकि इसके तहत मुख्य न्यायाधीश का कार्यकाल अब तीन वर्ष का होगा। यह निर्णय न्यायपालिका की स्थिरता और निरंतरता के लिए महत्वपूर्ण है, और इसे पाकिस्तान की न्यायिक प्रणाली में सुधार के एक प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।

संविधान के अनुच्छेद-75 के तहत, इस विधेयक को अब राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा। इससे पहले, प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने राष्ट्रपति से मुलाकात कर प्रस्तावित संशोधन के बारे में चर्चा की और उनकी सलाह ली। यह संशोधन सत्तारूढ़ गठबंधन के बीच सहमति के आधार पर आया है, जो विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच बातचीत और सहयोग का परिणाम है।

हालांकि, विपक्षी दलों के नेताओं ने इस प्रक्रिया पर आपत्ति जताई है। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के नेता अली जफर ने आरोप लगाया कि उनकी पार्टी के सांसदों को दबाव में लाकर इस विधेयक के पक्ष में वोट देने के लिए मजबूर किया गया। इस प्रकार, पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति में यह संवैधानिक संशोधन एक नई बहस और चुनौती का कारण बन सकता है, जो देश की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और न्यायपालिका के स्वतंत्रता पर सवाल खड़ा करता है।

पाकिस्तान में न्यायपालिका की स्थिति पर यह बदलाव इस बात का संकेत है कि राजनीतिक और न्यायिक संस्थाओं के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। अब देखना यह होगा कि इस संशोधन के लागू होने के बाद न्यायपालिका की स्वतंत्रता और राजनीतिक दखलंदाजी के बीच का संतुलन कैसे बना रहेगा। यह संशोधन न केवल पाकिस्तान की न्यायिक प्रणाली को प्रभावित करेगा, बल्कि देश के नागरिकों के अधिकारों और न्याय की प्रक्रिया में भी महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है।