हरियाणा विधानसभा चुनाव: निर्दलीयों का बढ़ता दबदबा, भाजपा-कांग्रेस के समीकरणों पर संकट

नई दिल्ली:  हरियाणा विधानसभा चुनाव का सियासी पारा चढ़ता जा रहा है और दोनों प्रमुख पार्टियां – भाजपा और कांग्रेस – पूरी ताकत से मैदान में हैं, लेकिन इन चुनावों की सबसे बड़ी चुनौती निर्दलीय और बागी उम्मीदवार बनते दिख रहे हैं। लगभग हर विधानसभा सीट पर एक या दो मजबूत निर्दलीय उम्मीदवार खड़े हैं, जो न केवल खुद जीतने का दमखम रखते हैं, बल्कि बड़े दलों के समीकरण भी बिगाड़ सकते हैं।

इस बार के चुनाव में कांग्रेस के लगभग 36 और भाजपा के 33 बागी नेता मैदान में हैं। ये बागी या तो निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उतर चुके हैं या छोटे दलों का समर्थन लेकर मुकाबले में हैं। इसके चलते हरियाणा में जो चुनावी लड़ाई पहले भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी दिख रही थी, अब त्रिकोणीय बन गई है। इस स्थिति ने दोनों प्रमुख पार्टियों की चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि कई सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी कुछ हजार वोटों के अंतर से चुनावी परिणाम बदल सकते हैं।

गुरुग्राम जैसी प्रमुख सीट, जो दिल्ली से सटी हुई है, इसमें भी निर्दलीय उम्मीदवार नवीन गोयल ने भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबले को रोचक बना दिया है। भाजपा के उम्मीदवार मुकेश शर्मा और कांग्रेस के मोहित ग्रोवर के बीच सीधी टक्कर मानी जा रही थी, लेकिन भाजपा से बगावत करके नवीन गोयल ने अपनी दावेदारी पेश कर दी है। ब्राह्मण और वैश्य समुदाय के बीच गहरी पकड़ रखने वाले गोयल के मैदान में होने से भाजपा का गणित बिगड़ सकता है। इसके साथ ही, पंजाबी समुदाय, जिसकी गुरुग्राम में बड़ी संख्या में मौजूदगी है, कांग्रेस के मोहित ग्रोवर का समर्थन कर सकता है। इस त्रिकोणीय मुकाबले में निर्दलीय उम्मीदवार का प्रभाव इस सीट पर निर्णायक हो सकता है।

कुरुक्षेत्र की सीट पर भी भाजपा की सीट खतरे में है, जहां पार्टी की बागी सावित्री जिंदल ने मंत्री कमल गुप्ता के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उद्योगपति परिवार से ताल्लुक रखने वाली सावित्री जिंदल का इस क्षेत्र में गहरा प्रभाव है, जिससे भाजपा की चुनौती और बढ़ गई है। सावित्री जिंदल न केवल लोकप्रिय हैं, बल्कि स्थानीय समुदाय के बीच उनकी मजबूत पकड़ है, जिससे भाजपा की दावेदारी कमजोर होती नजर आ रही है।

ऐसी कई सीटें हैं, जहां निर्दलीय उम्मीदवारों की वजह से चुनाव का परिणाम अप्रत्याशित हो सकता है। इन निर्दलीयों का प्रभाव कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। चुनाव के अंतिम चरण में यह देखना दिलचस्प होगा कि किस पार्टी को इन बागी उम्मीदवारों से नुकसान होगा और कौन अपनी सत्ता बचाने या हासिल करने में सफल रहेगा।