दिल्ली के वसंतकुंज में सामूहिक आत्महत्या: चार दिव्यांग बेटियों संग पिता ने की जिंदगी समाप्त, आर्थिक तंगी बनी वजह
नई दिल्ली : दिल्ली के वसंतकुंज इलाके से एक दिल दहला देने वाली सामूहिक आत्महत्या की खबर सामने आई है, जिसने एक बार फिर से बुराड़ी सामूहिक खुदकुशी कांड की भयावहता की याद दिला दी है। रंगपुरी गांव में एक पिता ने अपनी चार दिव्यांग बेटियों के साथ मिलकर सल्फास नामक जहरीला पदार्थ खाकर जान दे दी। इस भयावह घटना में परिवार के सभी पांच सदस्य मृत पाए गए। घटना का खुलासा तब हुआ जब घर से उठ रही बदबू से पड़ोसियों ने पुलिस को बुलाया और दरवाजा तोड़ने के बाद पुलिस को पांचों शव बेड पर पड़े हुए मिले।
पुलिस जांच में पाया गया कि पिता हीरालाल, जो एक कारपेंटर का काम करता था, आर्थिक तंगी से बुरी तरह जूझ रहा था। उसकी पत्नी का एक साल पहले कैंसर से निधन हो गया था, जिससे वह टूट गया था। इसके बाद से उसकी चार बेटियों की देखभाल की जिम्मेदारी भी उस पर आ गई थी। बेटियों की देखभाल के कारण हीरालाल अपने काम पर समय से नहीं जा पाता था, जिसके चलते उसे नौकरी से निकाल दिया गया था। जनवरी 2024 से वह नियमित रूप से ड्यूटी पर नहीं जा पा रहा था, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति और भी खराब हो गई थी।
हीरालाल की चारों बेटियां दिव्यांग थीं। 18 साल की नीतू, 15 साल की निशि, 10 साल की नीरू और 8 साल की निधि में से कुछ बेटियां चलने-फिरने में असमर्थ थीं, जबकि एक बेटी को देखने में भी समस्या थी। उनकी देखभाल और इलाज में हीरालाल व्यस्त रहता था, और आर्थिक तंगी के चलते वह मानसिक रूप से भी टूट चुका था। उसके परिवार ने बताया कि पत्नी की मौत के बाद से ही वह किसी से ज्यादा बात नहीं करता था और बेटियों के इलाज में ही लगा रहता था।
पुलिस ने मौके पर सल्फास की गोलियां, पानी की बोतलें और जूस के पैकेट बरामद किए, जिससे यह पुष्टि हुई कि परिवार ने सामूहिक आत्महत्या करने से पहले जहर का सेवन किया था। पुलिस को कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है, जिससे स्पष्ट कारणों का पता नहीं चला, लेकिन शुरुआती जांच में आर्थिक तंगी और परिवार की जिम्मेदारियों को आत्महत्या की मुख्य वजह माना जा रहा है।
इस घटना ने 2018 में बुराड़ी में हुए सामूहिक आत्महत्या मामले की भयावहता को फिर से जिंदा कर दिया है, जिसमें एक ही परिवार के 11 लोगों ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी थी। वसंतकुंज की यह घटना न केवल सामाजिक और आर्थिक दबावों को उजागर करती है, बल्कि समाज के कमजोर तबके की कठिनाइयों और उनकी मानसिक स्थिति को भी सामने लाती है।