रायपुर। प्रदेश की सड़कों ने आज फिर 8 लोगों की बलि ले ली । दो परिवार असमय मौत के मुंह में समा गए। दोनों दुर्घटना ट्रक से टकराने से हुई। कोरबा के पास एक सब इंस्पेक्टर का परिवार एक ट्रक की चपेट में आकर काल के गाल में समा गया । तो दूसरा परिवार अंबिकापुर से बनारस सड़क पर हादसे का शिकार हो गया। कोरबा और आसपास के इलाकों की सड़कों पर तो जैसे ट्रेलर व भारी ट्रकों का राज स्थापित हो गया है। जिसकी जहां मर्जी होती है ट्रक वहीं सड़क किनारे खड़ा कर देता है। फिर दूसरी तरफ से आने वाले को अगर जगह ना मिले तो सीधे मौत ही उसका ठिकाना बनती है। ट्रकों में ना पीछे बैक लाइट होती है और ना ही कोई संकेतक। फिटनेस के समय जरूरी रिफ्लेक्टर और चिपकाए जाने वाले स्टीकर का अता पता नहीं होता। कोयले के परिवहन में लगे ट्रकों पर सिर्फ कोयले की राख और धूल होती है। जो अंधेरे में खड़े ट्रक के होने नहीं होने का अंदाज भी नहीं होने देती है दूसरे वाहन चालकों को। फिर सबसे बड़ी बात तो ट्रक ड्राइवरों की शारीरिक क्षमता का है। दुबले पतले मरियल से ड्राइवर 20 20 टन 30 टन लोड लेकर हेवी ट्रक और टेलर चलाते हैं तो यकीन ही नहीं होता कि वह मंजिल तक पहुंच पाएंगे। पहले पांच 5 साल से 6 साल ट्रकों में जो हेल्परी करते थे वही ट्रक ड्राइवर बन पाते थे। अब तो लाइसेंस बनाने की प्रक्रिया में दलालों के वर्चस्व ने किसी को भी कोई भी लाइसेंस दिलाना आसान कर दिया है। और नतीजन कोई भी लाइसेंस लेकर ट्रक ड्राइव करने लग गया है। अनुभवहीन शारीरिक रूप से कमजोर ऐसे ही ड्राइवर अचानक उत्पन्न कठिन परिस्थितियों में हड़बड़ा कर गंभीर दुर्घटनाओं को जन्म दे देते हैं। अभी भी समय है लाइसेंस देने की प्रक्रिया में पारदर्शिता के साथ सख्ती बहुत जरूरी है। खासकर हेवी मोटर व्हीकल लाइसेंस के लिए। नहीं तो फिर हमको तैयार रहना चाहिए सड़कों पर बिखरे खून को पोछने के लिए, सड़कों पर बिखरी लाश के टुकड़ों को बटोरने के लिए, मुआवजा देने के लिए, रोने के लिए ,पछताने के लिए, और फिर एक में हादसे के लिए तैयार रहने के लिए।
अनिल पुसदकर