गौ आयोग अध्यक्ष की नियुक्ति पर हंगामा: भूपेश बघेल ने लगाए गंभीर आरोप
रायपुर : छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हाल ही में एक वीडियो जारी कर राज्य में एक नए विवाद को जन्म दिया है। इस वीडियो में उन्होंने विशेषर पटेल के खिलाफ लगाए गए गंभीर आरोपों पर प्रकाश डाला, जिन्हें हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा गौ आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। इस फैसले ने राज्य में राजनीतिक और सामाजिक हलकों में बड़ी बहस छेड़ दी है।
विवाद का मूल
विशेषर पटेल पर 2019 में कवर्धा जिले के एक अस्पताल में घुसकर डॉक्टरों और स्टाफ के साथ मारपीट, गाली-गलौज और धमकी देने के गंभीर आरोप हैं। उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 294, 323, 506बी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम की धारा 3(1)(10), और चिकित्सा सेवा अधिनियम की धाराओं 4 और 5 के तहत मामला दर्ज किया गया था। इस घटना में एक अनुसूचित जाति के डॉक्टर को भी निशाना बनाया गया था, जिससे यह मामला और अधिक संवेदनशील बन गया।
सरकार का रुख
सरकार ने इस मामले को “राजनीतिक” करार देते हुए इसे वापस लेने का फैसला किया है। हालांकि, यह दावा विवाद का केंद्र बन गया है। सवाल यह उठता है कि क्या एक अस्पताल में घुसकर डॉक्टरों से मारपीट को राजनीतिक गतिविधि कहा जा सकता है? भूपेश बघेल ने इस निर्णय की आलोचना करते हुए इसे अनुचित और जनहित के खिलाफ बताया है।
गौ आयोग अध्यक्षता पर सवाल
यह पहली बार नहीं है जब विशेषर पटेल विवादों में घिरे हैं। इससे पहले, उनके गौ आयोग अध्यक्ष रहने के दौरान बेमेतरा जिले में गौशाला में सैकड़ों गायों की हत्या का मामला सामने आया था। आरोप हैं कि भूसे में दबाकर गायों को मार दिया गया और उन्हें मांस, चमड़े और हड्डियों के लिए इस्तेमाल किया गया। इसके अलावा, उन पर अनुदान की राशि हड़पने का भी आरोप लगाया गया था।
राजनीतिक माहौल
कवर्धा जिला छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री विजय शर्मा का गृह जिला है। इस प्रकरण ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या स्थानीय राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल आपराधिक मामलों को दबाने के लिए किया जा रहा है? भूपेश बघेल ने इस फैसले पर नाराजगी जताते हुए सरकार से इसे तुरंत पलटने और जनता से माफी मांगने की मांग की है।
सामाजिक प्रतिक्रिया
विशेषर पटेल की नियुक्ति और उनके खिलाफ लगे आरोपों ने समाज के कई वर्गों में आक्रोश पैदा किया है। डॉक्टर समुदाय और अनुसूचित जाति संगठनों ने भी इस फैसले पर कड़ा विरोध जताया है। वे इसे न्याय और नैतिकता के खिलाफ मानते हैं।
इस विवाद ने छत्तीसगढ़ सरकार की कार्यप्रणाली और राजनीतिक फैसलों पर सवाल खड़े किए हैं। विशेषर पटेल की नियुक्ति को लेकर जो विवाद पैदा हुआ है, वह राज्य में राजनीतिक नैतिकता और प्रशासनिक जिम्मेदारी का बड़ा मुद्दा बन चुका है। जनता और विपक्ष ने सरकार से पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग की है। अब देखना होगा कि सरकार इस मामले पर क्या रुख अपनाती है और क्या जनता के विश्वास को बहाल करने के लिए ठोस कदम उठाती है।