“यूपी उपचुनाव: भाजपा का हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर जोर, हरियाणा-जम्मू चुनाव से मिली नई ऊर्जा”

लखनऊ:   उत्तर प्रदेश में 13 नवंबर को होने वाले उपचुनावों के लिए भाजपा ने एक खास रणनीति तैयार की है, जिसमें वह जातीय समीकरणों को साधने और चुनाव जीतने के लिए हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के एजेंडे को केंद्र में रख रही है। हाल के हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणामों से भाजपा को एक नया आत्मविश्वास मिला है, जिसे वह उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में बूस्टर के रूप में उपयोग करने की योजना बना रही है। पार्टी का मानना है कि यह चुनाव परिणाम यूपी के उपचुनावों में उसके लिए फायदेमंद साबित होंगे, क्योंकि वे एक सकारात्मक संकेत हैं कि भाजपा अभी भी मजबूत स्थिति में है।

हरियाणा में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने और जम्मू-कश्मीर में सबसे ज्यादा वोट हासिल करने के बाद, भाजपा ने विपक्ष के आरोपों और आलोचनाओं को खारिज करते हुए अपनी चुनावी ताकत को फिर से साबित किया है। हरियाणा में भाजपा ने जाट, दलित और यादव वोट बैंक में सेंधमारी की और “बंटोगे तो कटोगे” जैसे नारे के माध्यम से गैर-जाट और गैर-जाटव दलित मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबंद किया। भाजपा की रणनीति यूपी में भी इसी तरह की है, जहां पार्टी हिंदुत्व के नाम पर जातीय गोलबंदी को तोड़ने की कोशिश करेगी।

उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में भाजपा की योजना हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दों को प्रमुखता से उठाने की है। पार्टी का मानना है कि 2014 से लेकर 2022 तक हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दों ने उसे राज्य में चुनावी जीत दिलाई थी, और अब वह फिर से इसी फार्मूले को आजमा रही है। भाजपा के केंद्रीय और प्रदेश नेतृत्व ने यह तय किया है कि अगर उपचुनावों में यह रणनीति सफल होती है, तो 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए भी इसी पर आधारित योजना बनाई जाएगी।

भाजपा का मानना है कि संविधान और आरक्षण के मुद्दों पर जातीय समीकरण बिगड़ सकते हैं, लेकिन हिंदुत्व का एजेंडा उसे इस स्थिति को संभालने में मदद करेगा। पार्टी का यह विश्वास है कि हिंदू लामबंदी जातीय विभाजन से अधिक प्रभावी होगी और इसे “बंटोगे तो कटोगे” के नारे के साथ और मजबूत किया जाएगा। जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में भाजपा के पक्ष में हुए परिणाम इस रणनीति की सफलता का संकेत देते हैं, और पार्टी अब इसे यूपी के उपचुनावों में पूरी ताकत के साथ लागू करेगी।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा द्वारा अपनाई गई यह रणनीति जातीय गोलबंदी को तोड़ने और विभिन्न जातियों को हिंदुत्व के नाम पर एकजुट करने की दिशा में सफल हो सकती है। जम्मू-कश्मीर में भाजपा के पक्ष में हिंदू मतदाताओं की लामबंदी और हरियाणा में जाट, दलित और अन्य वर्गों के मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने की रणनीति भाजपा के लिए एक सबक के रूप में काम कर रही है।

इसके अलावा, विपक्षी दल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी भी भाजपा के इस एजेंडे की काट के लिए अपनी तैयारियां कर रहे हैं। यूपी के उपचुनाव भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकते हैं, क्योंकि यह न केवल आगामी 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए एक संकेत होगा, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए भी एक दिशा तय करेगा। भाजपा की यह कोशिश है कि वह जातियों को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के माध्यम से एकजुट कर 2014 और 2022 जैसे चुनावी समीकरणों को फिर से मजबूत करे।