यूपी उपचुनाव: मायावती की बसपा के सामने अस्तित्व बचाने की चुनौती, आकाश आनंद के नेतृत्व की भी परीक्षा

उत्तर प्रदेश :   उत्तर प्रदेश में होने वाले उपचुनावों की 9 सीटों के लिए चुनावी दांव-पेंच तेज हो चुके हैं। बसपा, जो एक समय प्रदेश में मजबूत स्थिति में थी, वर्तमान में हाशिए पर है। पार्टी को फिर से राज्य की राजनीति में प्रभावशाली बनाने की कोशिश में मायावती ने एक अलग ही रणनीति अपनाई है। बसपा को अब कुर्मी, निषाद, राजभर, पटेल और जाट समुदाय से उभरी नई राजनीतिक लीडरशिप के बीच अपनी जगह बनानी है। मायावती के लिए यह जरूरी है कि वे अपने कोर वोट बैंक को वापस जीतें और पार्टी काडर को सक्रिय करें। यह चुनाव न केवल बसपा के भविष्य के लिए बल्कि मायावती के भतीजे आकाश आनंद के नेतृत्व की भी परीक्षा है, जिन्हें इस उपचुनाव में पार्टी के भविष्य का संकेत माना जा रहा है।

मायावती की बदली रणनीति: कोर वोट बैंक पर जोर

2019 के लोकसभा चुनाव में असफल गठबंधन के बाद मायावती ने घोषणा की थी कि वे किसी बड़ी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगी। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भी मायावती इस स्टैंड पर कायम हैं। 2022 के चुनाव में उन्होंने मुस्लिम-दलित समीकरण बनाने का प्रयास किया था, लेकिन यह सफल नहीं रहा। 2024 की तैयारी में इस बार मायावती अपने परंपरागत वोट बैंक की ओर लौटने की कोशिश में हैं। गाजियाबाद, फूलपुर, मझवां और सीसामऊ जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर ऐसे उम्मीदवार खड़े किए हैं जो सपा और बीजेपी के गणित को सीधा चुनौती दे सकते हैं। मायावती ने चार सवर्ण उम्मीदवारों को भी टिकट दिए हैं, जो उन्हें मुस्लिम-दलित के साथ सवर्ण वोटरों की ओर भी ध्यान दिलाने का संकेत है।

आकाश आनंद का पहला बड़ा इम्तिहान

यूपी उपचुनाव बसपा के युवा नेता और मायावती के भतीजे आकाश आनंद के लिए भी एक महत्वपूर्ण मौका है। लोकसभा चुनाव के दौरान आकाश को पीछे रखा गया था, लेकिन उपचुनावों में उन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि वे कैसे पार्टी को फिर से सक्रिय कर पाते हैं और अपने नेतृत्व में पार्टी को नई पहचान दिलाने का प्रयास करते हैं। मायावती ने विभिन्न सीटों पर स्थानीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम और कुर्मी समुदाय से भी उम्मीदवार खड़े किए हैं। मुरादाबाद की कुंदरकी और मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट से बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार सपा के खिलाफ सीधा मुकाबला करेंगे, वहीं अंबेडकरनगर की कटेहरी सीट पर कुर्मी समुदाय के उम्मीदवार को मैदान में उतारा गया है।

सपा-बीजेपी की योजनाओं को चुनौती

इस चुनावी समीकरण में बसपा की चुनौती सपा और बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। करहल सीट से शाक्य समुदाय के उम्मीदवार को उतार कर बसपा ने बीजेपी और सपा के लिए मुकाबला कठिन बना दिया है। सपा की शोभावती वर्मा और बीजेपी के धर्मेंद्र यादव के जीजा अनुजेश यादव के सामने बसपा का यह दांव चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।

मायावती की इस चुनावी रणनीति का मुख्य उद्देश्य उपचुनाव में कोर वोट बैंक को पुनः एकजुट करना है और पार्टी को नया मोमेंटम प्रदान करना है। उपचुनाव के नतीजे केवल बसपा की स्थिति को नहीं, बल्कि मायावती की दीर्घकालिक राजनीतिक योजना को भी आकार देंगे।