फिलहाल, सपा ने कांग्रेस को गाजियाबाद और खैर विधानसभा सीटें दी हैं, लेकिन कांग्रेस इन सीटों पर लड़ने के बजाय अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए सीसामऊ, फूलपुर और मझवां जैसी सीटों पर दावेदारी कर रही है। कांग्रेस का मानना है कि इन क्षेत्रों में चुनाव लड़ने से पार्टी की स्थिति बेहतर होगी और इन सीटों पर जीत की संभावना अधिक है, जबकि गाजियाबाद और खैर सीटों पर जीत की संभावना बहुत कम है। ऐसे में, कांग्रेस सपा पर दबाव डाल रही है कि उसे ज्यादा उपयुक्त सीटें दी जाएं।
सपा और कांग्रेस के बीच पेंच तब और फंस गया है जब सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पहले ही इन सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। यह राजनीतिक संघर्ष एक बड़ा कारण बन गया है कि दोनों दलों के बीच उपचुनाव में गठबंधन को लेकर बातचीत अबतक सफल नहीं हो पाई है। कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि यदि उसे सम्मानजनक सीटें नहीं मिलीं तो वह उपचुनाव से दूर रह सकती है।
इसके साथ ही, कांग्रेस की रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यह भी है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव की कुछ “गलतफहमियों” को दूर किया जाए। कांग्रेस का मानना है कि अखिलेश यादव यह सोचते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन की सफलता पूरी तरह से उनके बनाए पीडीए (पिछड़े, दलित, आदिवासी) समीकरण के कारण थी। जबकि कांग्रेस के अनुसार, राहुल गांधी द्वारा संविधान और आरक्षण के मुद्दों पर बनाई गई जनजागरूकता और दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों को साथ लाने का प्रयास उस सफलता का प्रमुख कारण था। कांग्रेस का यह भी मानना है कि यदि वे इस उपचुनाव में कमजोर पड़ जाते हैं, तो भविष्य में सपा उन्हें और कमजोर करने की कोशिश करेगी, विशेष रूप से 2027 के विधानसभा चुनावों में।
इसके अलावा, कांग्रेस का दबाव सिर्फ उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है। पार्टी महाराष्ट्र में भी सपा की पकड़ को कमजोर करना चाहती है। अखिलेश यादव अपनी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने की कोशिश में हैं और यूपी के अलावा महाराष्ट्र में भी अपनी पैठ जमाने की योजना बना रहे हैं। हालांकि, कांग्रेस को आशंका है कि महाराष्ट्र में सपा की उपस्थिति मुस्लिम वोटों के बंटवारे का कारण बन सकती है, जिससे इंडिया गठबंधन के अन्य दलों को नुकसान होगा। इसलिए कांग्रेस यूपी में सपा पर दबाव बनाकर महाराष्ट्र में सपा की सीटों को सीमित करने की कोशिश कर रही है।
इस राजनीतिक खींचतान के बीच, कांग्रेस का उद्देश्य यह है कि वह उत्तर प्रदेश में अपने राजनीतिक प्रभाव को फिर से मजबूत करे और सपा से सम्मानजनक सीटों पर चुनाव लड़ने का अवसर हासिल करे। यह रणनीति उसे न केवल वर्तमान उपचुनावों में बल्कि 2027 के विधानसभा चुनावों में भी सपा के दबाव से मुक्त रखने में मदद करेगी, जिससे उसकी राजनीतिक स्थिति में सुधार होगा।