सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टालने की प्रवृत्ति पर नाराजगी जताई, वकील को फटकारा

नई दिल्ली:  सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को एक व्यवसायिक विवाद से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान एक दिलचस्प घटनाक्रम देखने को मिला, जब एक वकील ने अदालत से चार हफ्ते के लिए सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया। वकील का कहना था कि इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे पैरवी करेंगे, लेकिन फिलहाल वे विदेश में हैं और उनकी भारत वापसी के बाद ही इस मामले की सुनवाई होनी चाहिए।

वकील के इस तर्क पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने नाराजगी जताई और स्पष्ट शब्दों में कहा कि केवल किसी बड़े वकील का नाम लेकर सुनवाई टालने की यह आदत अब बंद होनी चाहिए।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइंया की पीठ ने इस अनुरोध पर कड़ी प्रतिक्रिया दी और वकील को फटकार लगाते हुए कहा:
“क्या आपको ऐसा लगता है कि हम किसी वरिष्ठ वकील का नाम सुनकर मामला स्थगित कर देंगे? यह आदत अब बंद होनी चाहिए। हम इस सोच को खत्म करना चाहते हैं कि सिर्फ बड़े वकील का नाम लेकर सुनवाई को टाला जा सकता है।”

पीठ ने यह भी कहा कि यह रवैया न्यायिक प्रक्रिया में अनावश्यक देरी लाने का एक तरीका बन गया है, जिसे अब अदालत बर्दाश्त नहीं करेगी। अदालत ने स्पष्ट किया कि सभी मामलों को तर्कसंगत समय सीमा में निपटाना आवश्यक है, और केवल वरिष्ठ वकील की अनुपस्थिति का हवाला देकर मामलों को लंबित रखना उचित नहीं है।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गहराई और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अंततः वकील की अपील स्वीकार कर ली और सुनवाई स्थगित कर दी। लेकिन साथ ही, यह स्पष्ट संकेत दिया कि भविष्य में इस तरह की रणनीति को अदालत हल्के में नहीं लेगी।

न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने की अपील

यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों की पेशेवर नैतिकता को लेकर सख्त रुख अपनाया है। इससे पहले जनवरी में भी एक वकील को अदालत से फटकार मिली थी, जब वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपनी कार से ही सुनवाई में शामिल हुए थे।

तब अदालत ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि यह न केवल न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला कृत्य है, बल्कि पेशेवर अनुशासन के खिलाफ भी है। कोर्ट ने उस वकील को सख्त चेतावनी देते हुए कहा था कि अदालत की गरिमा बनाए रखना सभी वकीलों की जिम्मेदारी है और उन्हें पेशेवर तरीके से सुनवाई में भाग लेना चाहिए।

वरिष्ठ वकीलों पर निर्भरता को कम करने की जरूरत

कई बार देखा गया है कि वरिष्ठ वकीलों की अनुपस्थिति का हवाला देकर मामलों की सुनवाई को स्थगित करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। इससे मामलों का निपटारा अनावश्यक रूप से लंबित रहता है और न्याय प्रक्रिया धीमी हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट की यह सख्त टिप्पणी इस पुरानी प्रवृत्ति को खत्म करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अदालत के इस सख्त रुख के बाद वकीलों के बीच सुनवाई स्थगित कराने की यह प्रवृत्ति कितनी कम होती है और क्या इससे न्यायिक प्रक्रिया में गति लाने में मदद मिलेगी।