“राज्यसभा में हंगामे के बीच सभापति धनखड़ की कड़ी टिप्पणी, स्थगन प्रस्तावों पर असहमति”
नई दिल्ली: राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को विपक्ष के लगातार हंगामे और स्थगन प्रस्तावों की भारी संख्या पर गहरी नाराजगी जताई। संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्ष ने कई अहम मुद्दों पर चर्चा की मांग की, लेकिन सभापति ने स्पष्ट रूप से कहा कि उच्च सदन की परंपराओं का पालन किया जाना चाहिए और सदन के नियमों का सम्मान जरूरी है। उनके इस बयान के बाद, जब विपक्ष ने स्थगन प्रस्ताव पेश किया, तो उन्होंने इन प्रस्तावों को मंजूरी नहीं दी, जिससे विपक्ष और भी आक्रोशित हो गया।
बुधवार को जब संसद की कार्यवाही शुरू हुई, तो विपक्षी सांसदों ने कई मुद्दों पर चर्चा के लिए स्थगन प्रस्ताव पेश किए। इनमें गौतम अदाणी के मुद्दे पर चर्चा, मणिपुर हिंसा, दिल्ली की कानून व्यवस्था और उत्तर प्रदेश के संभल में हुई हिंसा जैसे संवेदनशील मामले शामिल थे। हालांकि, सभापति ने इन प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि विपक्ष ने सदन में हंगामा करना शुरू कर दिया। इससे कार्यवाही को स्थगित करना पड़ा और गुरुवार तक इसे टाल दिया गया।
स्थगन प्रस्ताव संसद के नियमों के अनुसार, ऐसे मामलों पर लाया जाता है जिनकी तत्काल चर्चा आवश्यक होती है और जिनके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। यह प्रस्ताव तब पेश किए जाते हैं जब कोई राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय मुद्दा, जो तत्काल संसद में चर्चा का विषय हो, उसकी तत्काल चर्चा की आवश्यकता होती है। विपक्षी सांसदों का कहना था कि अदाणी घोटाले, मणिपुर हिंसा और दिल्ली की कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों पर तत्काल चर्चा होनी चाहिए।
राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि उच्च सदन की परंपराओं का पालन करना जरूरी है और हर सदस्य को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सदन का कार्य सुचारु रूप से चलता रहे। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले 30 वर्षों में कभी भी स्थगन प्रस्तावों की संख्या एकल अंक से अधिक नहीं रही, लेकिन इस बार कई प्रस्ताव एक साथ आए थे, जो कि एक असामान्य स्थिति थी। उनके अनुसार, यह उच्च सदन की कार्यवाही के लिए उचित नहीं है कि प्रस्तावों की संख्या इतनी अधिक हो और वे नियमों का पालन किए बिना पेश किए जाएं।
विपक्ष का आरोप है कि सरकार महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने से भाग रही है, खासकर अदाणी के मुद्दे पर। विपक्ष का कहना है कि सरकार जानबूझकर इन मुद्दों पर चर्चा से बच रही है। वहीं, सत्ता पक्ष ने आरोप लगाया है कि विपक्ष सिर्फ राजनीति कर रहा है और इन मुद्दों का उपयोग चुनावी लाभ प्राप्त करने के लिए कर रहा है।
राज्यसभा की यह घटना लोकतंत्र की कार्यप्रणाली और संसदीय संस्थाओं की जिम्मेदारी को उजागर करती है। प्रत्येक पक्ष को अपनी बात रखने का अधिकार है, लेकिन उसे सदन की प्रक्रिया और नियमों का पालन करते हुए करना चाहिए। इस स्थिति ने संसद की कार्यवाही में असहमति और हंगामे के बीच संवेदनशील मुद्दों पर गंभीर चर्चा की आवश्यकता को और भी प्रमुख बना दिया है।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर से यह सवाल उठाया है कि क्या वर्तमान संसद सत्रों में प्रासंगिक मुद्दों पर पारदर्शिता से चर्चा हो पा रही है या नहीं, और क्या लोकतंत्र के संस्थागत ढांचे को बचाने के लिए सभी सदस्यों को संयम और नियमों का पालन करना जरूरी नहीं है।