दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक येओल से 10 घंटे तक हुई पूछताछ, अधिकारियों के सवालों का नहीं दिया कोई जवाब
सियोल: दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक येओल पर महाभियोग की प्रक्रिया के बीच सियोल में एक बड़े राजनीतिक घटनाक्रम के रूप में उनके खिलाफ भ्रष्टाचार जांच का मामला भी जोड़ा गया है। गुरुवार को भ्रष्टाचार विरोधी जांच अधिकारियों ने राष्ट्रपति यून से दस घंटे तक पूछताछ की, लेकिन उन्होंने किसी सवाल का उत्तर नहीं दिया। यह घटना दक्षिण कोरिया में राजनीति और कानून के बीच खतरनाक कड़ी जंग का प्रतीक बन चुकी है, क्योंकि यह मामला सिर्फ उनके व्यक्तिगत भविष्य पर नहीं बल्कि देश की राजनीति और प्रशासनिक संरचना पर भी गहरा असर डाल सकता है।
यून की गिरफ्तारी और अदालत की कार्रवाई
यून सुक येओल के खिलाफ भ्रष्टाचार जांच उसी समय शुरू हुई जब 3 दिसंबर को उन्होंने अपने प्रशासन के तहत मार्शल लॉ लागू करने की कोशिश की, जिससे उत्पन्न हुई राजनीतिक अस्थिरता ने उनके समर्थकों और विरोधियों के बीच गहरा तनाव पैदा कर दिया। दक्षिण कोरिया की अदालत में सुनवाई के दौरान उनके समर्थक बड़ी संख्या में सड़कों पर उतर आए थे और उन्होंने यून की रिहाई की मांग की। उन्होंने बैनर लहराकर राष्ट्रपति के पक्ष में नारे लगाए, वहीं सुरक्षा बलों के भारी इंतजाम के बीच अदालत ने उनके मामले पर विचार करना शुरू किया है।
यून के वकील अब भी यह दावा करते हैं कि हिरासत वारंट अवैध था, और उन्होंने सियोल सेंट्रल जिला न्यायालय से यून की रिहाई के लिए फैसले पर विचार करने का आग्रह किया है। उनका यह तर्क है कि केवल अदालत की सुनवाई के बाद ही गिरफ्तारी वारंट जारी किया जा सकता है। ऐसे में यह मामला केवल कानूनी प्रक्रिया की परीक्षा नहीं है, बल्कि दक्षिण कोरिया की न्याय व्यवस्था पर भी एक बड़ा दबाव बना हुआ है।
विद्रोह और सत्ता के दुरुपयोग के आरोप
आपराधिक कानून के विशेषज्ञों के मुताबिक यदि यून के खिलाफ विद्रोह और सत्ता के दुरुपयोग जैसे गंभीर आरोप साबित होते हैं, तो उन्हें अदालत द्वारा गिरफ्तार रखा जा सकता है, और यह प्रक्रिया लंबे समय तक चल सकती है। दक्षिण कोरिया के संविधान के अनुसार, अगर किसी राष्ट्रपति के खिलाफ विद्रोह का आरोप साबित होता है, तो उसे सख्त सजा मिल सकती है, जैसे मौत की सजा या फिर आजीवन कारावास। यह स्थिति राष्ट्रपति यून के लिए खासा खतरनाक हो सकती है, क्योंकि देश के कानूनी ढांचे में ऐसी सजा के लिए कोई स्थान छोड़ा नहीं गया है।
मार्शल लॉ के प्रभाव और महाभियोग प्रक्रिया
मार्शल लॉ की घोषणा ने पूरे दक्षिण कोरियाई समाज में गहरे आक्रोश का संचार किया था, भले ही यह कुछ घंटों के लिए लागू किया गया। हालांकि, इसके बाद दक्षिण कोरिया में राजनीतिक हलचल और सत्ता संघर्ष ने पूरी राजनीतिक स्थिति को न सिर्फ हिला दिया, बल्कि यह राष्ट्र की लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति सवाल भी उठा दिया। इसके बाद सांसदों ने 14 दिसंबर को महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने के लिए मतदान किया, और राष्ट्रपति को पद से हटाने की प्रक्रिया को बल दिया।
गिरफ्तारी की कोशिशें और कानूनी विवाद
यून पर की गई गिरफ्तारी की कोशिशों के दौरान उनकी सुरक्षा सेवा और समर्थकों ने पुलिस बलों का विरोध किया। वे बार-बार इस दावे का हवाला दे रहे थे कि जांच एजेंसी को विद्रोह के आरोपों के मामलों की जांच करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। इसके बावजूद, न्यायालय को मामले की गहनता के साथ विवेकपूर्ण निर्णय लेना है कि क्या यून को औपचारिक रूप से पद से हटाया जाए या उनकी याचिकाओं को स्वीकार कर उन्हें बहाल किया जाए।
अंतिम तौर पर यह मामला न केवल यून के व्यक्तिगत भविष्य का, बल्कि पूरे दक्षिण कोरियाई लोकतंत्र की ताकत का भी फैसला करेगा, क्योंकि यह उदाहरण बनेगा कि कैसे एक राष्ट्र अपने राष्ट्रपति से लेकर आम नागरिक तक कानून और लोकतंत्र की सीमाओं का पालन करता है, जब सत्ता दुरुपयोग का आरोप उठता है।