तमिलनाडु के लिए शिक्षा फंड जारी करें: सीएम स्टालिन ने पीएम मोदी से की अपील, एनईपी 2020 से जोड़ने का किया विरोध

चेन्नई तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन और केंद्र सरकार के बीच राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को लेकर मतभेद गहराते जा रहे हैं। इस मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखते हुए केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वह तमिलनाडु के लिए समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए) के तहत 2,152 करोड़ रुपये की निधि जल्द जारी करे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस फंड को एनईपी 2020 और पीएम स्कूल योजना से जोड़ना राज्य सरकार के लिए पूरी तरह अस्वीकार्य है।

सीएम स्टालिन ने अपने पत्र में सहकारी संघवाद का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री से अपील की कि तमिलनाडु के लाखों छात्रों और शिक्षकों के हित में बिना किसी शर्त के एसएसए फंड तुरंत जारी किया जाए। उन्होंने कहा कि शिक्षा राज्यों का विषय है और केंद्र सरकार को इस फंड को जारी करने के लिए तमिलनाडु पर दबाव नहीं बनाना चाहिए।

एनईपी 2020 और तीन-भाषा नीति से असहमति

तमिलनाडु सरकार पहले से ही एनईपी 2020 और तीन-भाषा नीति को लागू करने का विरोध करती रही है। राज्य दशकों से अपनी दो-भाषा नीति (तमिल और अंग्रेजी) का पालन कर रहा है, जिसे तमिल समाज और राजनीतिक दलों का व्यापक समर्थन प्राप्त है। स्टालिन ने अपने पत्र में इस नीति की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को रेखांकित करते हुए कहा कि यही कारण है कि तमिलनाडु को ‘राजभाषा अधिनियम, 1963’ से छूट दी गई थी।

मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार शिक्षा सुधारों के नाम पर राज्यों की स्वायत्तता को प्रभावित कर रही है और इस प्रकार का हस्तक्षेप सहकारी संघवाद की भावना के खिलाफ है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार एसएसए फंड को रोककर राज्य पर दबाव बना रही है ताकि तमिलनाडु को जबरन एनईपी 2020 लागू करने के लिए मजबूर किया जा सके।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के बयान पर प्रतिक्रिया

सीएम स्टालिन ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के हालिया बयान पर भी गहरी चिंता व्यक्त की। प्रधान ने संकेत दिया था कि जब तक तमिलनाडु एनईपी 2020 और तीन-भाषा नीति को पूरी तरह से लागू नहीं करता, तब तक एसएसए फंड जारी नहीं किया जाएगा। इस बयान को लेकर तमिलनाडु में व्यापक असंतोष देखा जा रहा है। स्टालिन ने कहा कि केंद्र सरकार का यह रवैया न केवल शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि इससे छात्रों और शिक्षकों की भविष्य की संभावनाओं पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

उन्होंने कहा कि यह फैसला तमिलनाडु के छात्रों, राजनीतिक दलों और आम जनता में असंतोष और चिंता पैदा कर रहा है। राज्य सरकार यह मानती है कि शिक्षा नीति को राज्यों की आवश्यकताओं और स्थानीय सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना को ध्यान में रखते हुए तय किया जाना चाहिए, न कि केंद्र सरकार की एकतरफा नीतियों के आधार पर।

तमिलनाडु की शिक्षा नीति और एनईपी 2020 का टकराव

तमिलनाडु लंबे समय से अपने स्वतंत्र शिक्षा मॉडल को बनाए रखने के पक्ष में रहा है। राज्य में शिक्षा व्यवस्था में क्षेत्रीय भाषा (तमिल) और अंग्रेजी पर जोर दिया जाता है, और तीन-भाषा नीति के तहत हिंदी को अनिवार्य करने का हमेशा विरोध किया गया है। एनईपी 2020 के तहत देशभर में शिक्षा प्रणाली में व्यापक बदलाव किए जा रहे हैं, लेकिन तमिलनाडु सरकार इसे अपनी मौजूदा नीति के लिए उपयुक्त नहीं मानती है।

सीएम स्टालिन ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि राज्यों के अधिकारों को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने केंद्र से अपील की कि तमिलनाडु को उसकी शिक्षा नीति निर्धारित करने की स्वतंत्रता दी जाए और एसएसए फंड को बिना शर्त जारी किया जाए।

सहकारी संघवाद पर असर और राज्यों के अधिकारों का मुद्दा

तमिलनाडु सरकार का मानना है कि केंद्र सरकार राज्यों की स्वायत्तता को कमजोर करने का प्रयास कर रही है। स्टालिन ने कहा कि शिक्षा नीति को जबरदस्ती राज्यों पर थोपा नहीं जा सकता और इसे स्थानीय जरूरतों के आधार पर तय किया जाना चाहिए।

उन्होंने जोर देते हुए कहा कि तमिलनाडु की शिक्षा व्यवस्था को किसी भी बाहरी दबाव में बदला नहीं जाएगा और उनकी सरकार छात्रों और शिक्षकों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने केंद्र सरकार से सहकारी संघवाद की भावना को बनाए रखने की अपील की और राज्य के लिए आवंटित एसएसए फंड को तुरंत जारी करने की मांग की।