आर माधवन की नई पारी: ‘हिसाब बराबर’ की सफलता और री-रिलीज फिल्मों पर उनकी बेबाक राय

आर माधवन इन दिनों अपनी ओटीटी फिल्म ‘हिसाब बराबर’ को लेकर चर्चा में हैं, जिसमें उन्होंने एक साधारण व्यक्ति का किरदार निभाया है। फिल्म में वह एक ऐसे आम आदमी के रूप में नजर आते हैं, जो अपनी ईमानदारी और दृढ़ता के बल पर एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश करता है। माधवन ने हाल ही में फिल्मों की सफलता और असफलता के पहलुओं पर खुलकर बात की और अपने लंबे फिल्मी करियर से जुड़े अनुभव साझा किए। उनकी सोच और समझ ने दर्शकों के साथ फिल्म निर्माण की गहराई को लेकर एक नई चर्चा छेड़ दी है।

‘हिसाब बराबर’ के संदर्भ में माधवन ने बताया कि एक फिल्म को हिट या फ्लॉप बनाने में प्रचार-प्रसार से ज्यादा महत्व कहानी और कलाकारों के अभिनय का होता है। माधवन का मानना है कि फिल्म की गुणवत्ता इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें काम कर रहे अभिनेता अपने किरदार को कितना आत्मसात कर पाते हैं। पीटीआई को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “अगर आपके पास ऐसे कलाकार नहीं हैं जो अपने पात्र को जी सकें और संवाद प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत कर सकें, तो आपकी फिल्म दर्शकों तक नहीं पहुंच पाएगी।”

माधवन ने इस दौरान फिल्मों के लिए दर्शकों की बदलती पसंद और नजरिए पर भी बात की। उन्होंने बताया कि जहां एक तरफ दक्षिण भारतीय सिनेमा बड़ी कमाई कर रहा है, वहीं कई छोटी फिल्मों ने भी बॉक्स ऑफिस पर अद्भुत प्रदर्शन किया है। उन्होंने फिल्म ‘मुंज्या’ का उदाहरण दिया, जिसने सीमित संसाधनों और बिना किसी बड़े स्टार कास्ट के शानदार प्रदर्शन किया। इसके विपरीत, कई बड़े बजट की फिल्में, जो स्टार कास्ट और बड़े प्रचार पर निर्भर थीं, असफल रहीं। माधवन का कहना है, “सिर्फ बड़े सितारों और तड़क-भड़क से फिल्में सफल नहीं बनतीं, बल्कि अच्छी कहानी और अद्वितीय अभिनय ही दर्शकों को थिएटर तक खींचता है।”

‘रहना है तेरे दिल में’ के अनुभवों को साझा करते हुए माधवन ने इस कल्ट फिल्म के साथ जुड़ी यादों को भी ताजा किया। उन्होंने बताया कि जब यह फिल्म पहली बार 2001 में रिलीज हुई थी, तब इसे थिएटर में ज्यादा दर्शक नहीं मिले थे। हालांकि, बाद में जब यह फिल्म टेलीविजन पर आई तो यह दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय हो गई और एक कल्ट क्लासिक बनकर उभरी। हाल ही में इस फिल्म को फिर से रिलीज किया गया, जहां इसे दर्शकों से भरपूर प्यार मिला। माधवन ने कहा, “इस बार लोग थिएटर में पुरानी यादों को फिर से जीने के लिए आए। यह एक ऐसा अनुभव है जो एक अभिनेता के तौर पर मेरे लिए बहुत खास है।”

माधवन की बातों के साथ उन्होंने पिछले साल री-रिलीज हुई फिल्मों की लहर पर भी चर्चा की। उन्होंने ‘लैला मजनू’, ‘रॉकस्टार’, ‘करण अर्जुन’, ‘तुम्बाड’ और ‘कहो ना प्यार है’ जैसी फिल्मों का जिक्र किया, जिन्हें दर्शकों ने नई तरह से स्वीकारा और सराहा। माधवन का कहना है कि री-रिलीज का ट्रेंड केवल फिल्मों की कहानी और उनकी आत्मा पर निर्भर करता है।

आर माधवन की सोच और विचारधारा ने न केवल फिल्म निर्माण की गंभीरता को रेखांकित किया, बल्कि इस बात को भी साबित किया कि उत्कृष्ट कहानी और प्रतिभाशाली अभिनेताओं का योगदान ही एक फिल्म को यादगार बनाता है।