प्रधानमंत्री मोदी का ‘संवाद’ कार्यक्रम में संबोधन: भारत-थाईलैंड के 2000 वर्षों से भी पुराने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को किया रेखांकित

बैंकॉक:  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को भारत और थाईलैंड के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को रेखांकित करते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच यह गहरा रिश्ता 2000 वर्षों से भी अधिक पुराना है। उन्होंने जोर दिया कि यह संबंध न केवल ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पूरे एशिया में शांति, सद्भाव और आध्यात्मिक एकता को बढ़ावा देने में भी सहायक है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि थाईलैंड में ‘संवाद’ कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है, जो बौद्ध धर्म, एशियाई परंपराओं और वैश्विक शांति को लेकर गहन चर्चा और संवाद का एक महत्वपूर्ण मंच है।

प्रधानमंत्री मोदी ने थाईलैंड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर, इतिहास और परंपराओं की सराहना करते हुए कहा कि यह देश एशिया की दार्शनिक और आध्यात्मिक विरासत का एक सुंदर उदाहरण है। उन्होंने कहा कि भारत और थाईलैंड के बीच की ऐतिहासिक कड़ियां केवल राजनीतिक या आर्थिक नहीं, बल्कि गहरे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों से भी जुड़ी हुई हैं। इस संदर्भ में उन्होंने महाकाव्य रामायण और थाईलैंड के ‘रामकियेन’ ग्रंथ की समानता का उल्लेख किया, जो दोनों देशों के सांस्कृतिक ताने-बाने को जोड़ने का एक प्रमुख स्रोत है। उन्होंने भगवान बुद्ध के प्रति दोनों देशों की श्रद्धा को भी रेखांकित किया और कहा कि यह आध्यात्मिक संबंध दोनों देशों को एकजुट करता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने इस मौके पर याद दिलाया कि जब भारत ने भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेष थाईलैंड भेजे थे, तब वहां के करोड़ों श्रद्धालुओं ने उन्हें नमन किया था। उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध की शिक्षाएं न केवल भारत और थाईलैंड, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एशियाई सदी केवल आर्थिक विकास से जुड़ी नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक मूल्यों और आध्यात्मिक समृद्धि की भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी।

प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी बताया कि ‘संवाद’ की यह पहल 2015 में जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ चर्चा के दौरान उभरी थी। इसके बाद से इस पहल का विस्तार विभिन्न देशों में हुआ, जिससे वैश्विक स्तर पर बहस, संवाद और समझ को बढ़ावा मिला है। उन्होंने कहा कि भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और थाईलैंड की ‘एक्ट वेस्ट’ नीति एक-दूसरे की पूरक हैं, जिससे दोनों देशों के आपसी विकास और समृद्धि को बढ़ावा मिलता है। उन्होंने कहा कि यह साझेदारी न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करेगी, बल्कि पूरे एशिया में सहयोग और विकास को भी नई दिशा देगी।

संघर्षों और वैश्विक चुनौतियों के संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि संवाद का एक प्रमुख उद्देश्य संघर्ष से बचना और शांति को बढ़ावा देना है। उन्होंने कहा कि अक्सर संघर्ष इस सोच से पैदा होते हैं कि केवल हमारा दृष्टिकोण ही सही है और बाकी सभी गलत हैं। उन्होंने भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि बुद्ध के उपदेश इस मानसिकता को समाप्त करने में सहायक हो सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि संघर्ष तब भी उत्पन्न होता है जब लोग दूसरों को अपने से अलग समझने लगते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यदि हम सभी को अपने जैसा मानेंगे और एक-दूसरे के दुख-दर्द को समझेंगे, तो हिंसा और टकराव से बचा जा सकता है।

पर्यावरण संकट पर चिंता व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आज संघर्ष केवल राष्ट्रों और समाजों के बीच ही नहीं हो रहा, बल्कि मानवता और प्रकृति के बीच भी बढ़ रहा है। उन्होंने इसे एक गंभीर पर्यावरणीय संकट बताया, जो पूरी पृथ्वी के अस्तित्व के लिए खतरा बन चुका है। उन्होंने कहा कि इस चुनौती का समाधान एशियाई परंपराओं में छिपा हुआ है, जो संतुलन और सद्भाव की शिक्षा देती हैं। उन्होंने बताया कि हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, शिंतोवाद और अन्य एशियाई परंपराएं प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने की शिक्षा देती हैं। उन्होंने कहा कि भारत सहित पूरे एशिया की आध्यात्मिक परंपराएं प्रकृति को एक अलग अस्तित्व के रूप में नहीं, बल्कि अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा मानती हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने भारत द्वारा बौद्ध विरासत को बढ़ावा देने के लिए किए गए प्रयासों का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि हाल ही में भारत ने पहला एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन आयोजित किया था, जिसका विषय था – ‘एशिया को मजबूत बनाने में बुद्धधम्म की भूमिका’। इससे पहले, भारत ने पहला वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन भी आयोजित किया था। उन्होंने कहा कि भारत बौद्ध संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर काम कर रहा है। उन्होंने नेपाल के लुम्बिनी में ‘भारत अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्कृति और विरासत केंद्र’ की आधारशिला रखने को अपने लिए एक बड़ा सम्मान बताया। इसके अलावा, भारत ने लुम्बिनी संग्रहालय के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

प्रधानमंत्री मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन काल में दुनिया के सबसे महान शिक्षा केंद्रों में से एक था, जिसे आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया था। लेकिन अब इसे फिर से एक प्रमुख शिक्षा केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि भगवान बुद्ध के आशीर्वाद से नालंदा विश्वविद्यालय एक बार फिर अपने गौरवशाली अतीत को प्राप्त करेगा और दुनिया के बौद्ध अनुसंधान और अध्ययन का केंद्र बनेगा।

संवाद का यह चौथा संस्करण 14 से 17 फरवरी तक थाईलैंड में आयोजित किया जा रहा है। यह पहल भारत और जापान की साझेदारी से शुरू हुई थी, जिसका नेतृत्व भारत में विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन (वीआईएफ) कर रहा है, जिसमें जापान फाउंडेशन एक प्रमुख भागीदार है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस मंच के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह केवल एक शैक्षणिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एशिया की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और दार्शनिक धरोहर को एक साथ जोड़ने का एक सशक्त माध्यम भी है। उन्होंने इस पहल के माध्यम से वैश्विक स्तर पर संवाद, सह-अस्तित्व और शांति को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन के अंत में इस बात पर जोर दिया कि एशिया को भविष्य में आर्थिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाने के लिए हमें अपनी प्राचीन परंपराओं और मूल्यों से जुड़ना होगा। उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध की शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं और यदि हम उनके सिद्धांतों को अपनाएं, तो यह पूरी दुनिया को एक अधिक शांतिपूर्ण, सहिष्णु और समृद्ध भविष्य की ओर ले जा सकता है।