प्रदूषण सिर्फ दिल्ली में ही नहीं है सरकार,और आम आदमी सिर्फ दिल्ली में ही नहीं रहते

प्रदूषण सिर्फ दिल्ली में ही नहीं है सरकार,और आम आदमी सिर्फ दिल्ली में ही नहीं रहते।राजधानी रायपुर से लगे उरला, सिलतरा औद्योगिक केंद्र की कुछ इकाईयां तो धुआं नहीं जहर उगल रही है और आसपास रहने वाले ग्रामीण मजबूरी में जहर निगल रहे है।
संसद में दिल्ली के प्रदूषण पर जमकर हंगामा हुआ और बहस के लिए 4 घंटे दिए गए।खबरों में भी सिर्फ दिल्ली का ही प्रदूषण सुर्खियां बटोर रहा है।जनप्रतिनिधि भी दिल्ली के आम आदमी की चिंता में दुबले हो रहे है।उन्हें चिंता है दिल्लीवासियों की हर सांस की,मगर हमारे शहर रायपुर से लगे ग्रामीण इलाकों में हर पल सांसों में घुलते जहर की चिंता शायद यहां के जनप्रतिनिधियों को रत्ती भर भी नहीं है।
शाम को आप रायपुर से बाहर निकलते ही काले धुएं के जहरीले राक्षस को साफ सुथरे आसमान को निगलते हुए देख सकते है।वेस्ट को भी सड़क के किनारे या जहां खाली जगह मिलती है फेंक दिया जाता है।नदी नाले भी प्रभावित हो रहे है,और पेड़/पत्तियों को देखकर आप बता ही नहीं सकते कि वे हरे है या काले।घरों की छत पर कालिख/राख का कब्जा होता जा रहा है।
मजे की बात ये है कि ये सब सिर्फ जो प्रदूषण का दंश झेल रहे है उन्हीं को दिखता है,महसूस होता है।जनप्रतिनिधि चाहे वो किसी भी दल का हो,किसी भी स्तर का ही या किसी पद पर बैठा हो उन्हें ये सब नजर नहीं आता।एक्टिविस्ट की खामोशी भी चुभने वाली है और खबरें तो शायद धुंआ उगलने वालो के भारी भरकम विज्ञापनों के नीचे दबकर दम तोड़ चुकी है।
संबंधित अफसर जांच की फॉर्मेलिटी जरूर करते है,मगर वो सिर्फ फॉर्मेलिटी ही होती है जांच नहीं।और फिर भाईचारे को बढ़ाने की प्रकिया के साथ “ऑल इज़ वेल”
का जयघोष हो जाता है।
और पीछे छोड़ जाता है निर्दोष ग्रामीणों को हर पल जहरीली सांस लेने के लिए।अफसोस इस बात का भी है जब दिल्ली के प्रदूषण पर इतना हंगामा हो रहा है,तब भी हमारे जनप्रतिनिधियों (पक्ष/विपक्ष)को फर्क नहीं पड़ा।किसी ने चूं तक नहीं की,हंगामा करना तो बहुत दूर की बात है।
लगता है मेरे प्रदेश का कोई माई बाप है ही नहीं।
देखे कब जागते है संबंधित जिम्मेदार लोग,और प्रदूषण पर कब उन्हें चिंता होती है।