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पत्रकारिता विश्वविद्यालय में एक दिवसीय व्याख्यान माला का हुआ आयोजन, प्रो. व्यास ने कहा– मीडिया शोध समाज में सकारात्मक व सुधारात्मक भूमिका निभा सकता है

रायपुर। कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में मीडिया शोध, गुणवत्ता व उपादेयता को लेकर एक दिवसीय व्याख्यान माला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य विषय वक्ता के रूप में महात्मा गांधी चित्रकोट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग प्रमुख प्रो. विरेन्द्र कुमार व्यास आमंत्रित थे। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने केटीयू विश्वविद्यालय के सभी संकायों के प्रमुखों व विद्यार्थियों को बधाई देते हुए कहा कि इस विश्वविद्यालय में न्यू मीडिया को लेकर अपार संभावनाओं का सृजन किया जा रहा है. इस विश्वविद्यालय में तकनीकी दक्षता को मूर्त रूप देने में यहां के शिक्षक अपनी महती भूमिका अदा कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में मीडिया एवं टीवी जगत अपने दायित्वों को ठीक तरह से निभा पाने की मुश्किल भरे दौर से गुजर रहा है। जैसे भोजन को किसी थाली में जिस तरह से सजाकर परोसा जाता है, उसका संबंध सीधा शरीर व स्वास्थ्य से होता है, ठीक उसी प्रकार प्रायोजित कार्यक्रमों को हमारे सामने जिस रंग-रूप में परोसा जा रहा है, उसका सीधा संबंध हमारे मन-मस्तिष्क पर पड़ रहा है. अब उसका प्रभाव सकारात्मक है या नकारात्मक ये शोध का विषय है. इसे हम ‘डाइट फॉर माइंड्स’ कह सकते हैं. टीवी प्रसारण से उत्पन्न विभीषिकाओं से मानसिक प्रताड़ना, वैचारिक विकृतियों को किसी दवा या थैरेपी से ठीक कर पाना बेहद जटिल कार्य है। खराब खाने से उत्पन्न व्याधियों से जल्दी ही छुटकारा पाया जा सकता है किन्तु वैचारिक प्रदूषण की मार से बच पाना अत्यन्त दुष्कर कार्य है.

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने आगे कहा कि टीवी प्रसारण में शोध कार्य को लेकर मीडिया की एक अहम भूमिका है, जो समाज में सकारात्मक व सुधारात्मक भूमिका निभा सकता है. टीवी जगत के लिए सिर्फ सूचना या मनोरंजन प्रदान करना ही मुख्य उद्देश्य नहीं है बल्कि इसके पीछे का असल मकसद टीआरपी के जरिए मुनाफा कमाना भी है. आज मीडिया अपने आपको सशक्त भूमिका में स्थापित करने व मार्केट के अनुरूप कार्य करने के लिए वैलेडिटी ऑफ डाटा, फाइंडिंग एज स्पेसिफिक एरिया पर काम कर रहा है. इस हिसाब से मार्केट रिसर्च विदेशों में बहुत ज्यादा पॉपुलर है. भारत में भी इस दिशा में अब बेहतर काम होने लगा है. अगर हम शोध में सांख्यिकीय समीकरणों का समुचित व व्यवस्थित तरीके से प्रयोग करें तो अपने शोधकार्य व शोध पत्रों को वैश्विक स्तर पर स्वीकार करने योग्य बना सकते हैं, जिससे हमारे शोध की प्रासंगिकता और अधिक बढ़ जाएगी।

प्रो. व्यास ने बताया कि शोध में क्या करना है ये जानना बहुत जरूरी है लेकिन क्या नहीं करना है, इसे जानना और भी ज्यादा जरूरी है क्योंकि इससे हम व्यर्थ के भटकाव से बच सकते हैं. जिस प्रकार शरीर को निरोग रखने के लिए कौन सा योग कारगर होगा, इसका ज्ञान होना जरूरी है लेकिन किस रोग में कौन सा आसन नहीं करना है, इस बात का ज्ञान और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है. समाज के हित में कोई शोध कितना कारगर, लोकोपकारी व व्यापक है ये उसकी कार्य परिणति पर निर्भर करता है. अच्छा शोध किसी भी कृति के लिए प्रेरणादायी हो सकता है. अच्छे शोध में भाषा की सुचिता का ध्यान रखा जाना चाहिए. मीडिया की दशा और दिशा को सकारात्मक मार्ग प्रदान करने के लिए सकारात्मक आदर्श अपने शोध के माध्यम से प्रस्तुत करना होगा. साथ ही टीवी जगत को महिलाओं के चारित्रिक छवि को दृढ़, निर्भिक, सकारात्मक व न्याय संगत ढंग से प्रस्तुत करने में सावधानी व जागरूकता दिखानी होगी तभी हम वैचारिक रूप से समृद्ध समाज व राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं।

इस व्याख्यान माला का संयोजन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग के अध्यक्ष डॉ. नरेन्द्र त्रिपाठी ने किया. मंच संचालन वर्षा शर्मा व आभार प्रदर्शन बॉबी राजपूत ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. आनंद शंकर बहादुर, विज्ञापन व जनसंपर्क विभाग के एसो. प्रो. शैलेन्द्र खंडेलवाल, जनसंचार विभाग से डॉ. राजेन्द्र मोहंती, भाषा विभाग की डॉ. वैशाली गोलाप, छात्रावास सह प्रभारी शेखर शिवहरे, अतिथि प्राध्यापक काजल मिश्रा, अमित चौहान, सुप्रिया कुमारी, तकनीकी में टिकेश्वर चौधरी, राकेश साहू, ज्योति साहू, सुरेन्द्र यादव व अन्य कर्मचारियों सहित बड़ी तादात में विद्यार्थीगण मौजूद रहे।

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