नीतीश-नायडू के बिना भी प्रधानमंत्री बन सकते हैं नरेंद्र मोदी
नई दिल्ली : अगर नीतीश और नायडू दोनों ही बीजेपी का साथ छोड़ देते हैं, ऐसे में तो एनडीए बहुमत के आंकड़े को पार ही नहीं कर पाएगा। तो फिर क्या होगा, फिर होगी राजनीति, जो इस देश के लोकतंत्र को और भी खूबसूरत बनाती है। क्योंकि तब काम आएंगे वो छोटे दल जो न तो बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ हैं और न ही कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया के साथ हैं। इसके अलावा ऐसे वक्त में निर्दलीय सांसदों की भूमिका भी बेहद महत्वपूर्ण हो जाएगी।
उसको भी समझ लेते हैं और मान लेते हैं कि चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार दोनों ने ही बीजेपी का साथ छोड़ दिया है। तब भी एनडीए के पास 266 का आंकड़ा है, जो बहुमत से महज 6 कम है और इन 6 सीटों की भरपाई तो बीजेपी कुछ छोटे दलों और निर्दलीय सांसदों के साथ मिलकर कर सकती है। इस चुनाव में कुल सात निर्दलीय सांसदों ने जीत दर्ज की है।
निर्दलीय सांसदों की बढ़ेगी भूमिका
इन सात सांसदों में लद्दाख के सांसद मोहम्मद हनीफा, बारामूला के सांसद इंजीनियर राशिद, दमन और दीव के सांसद उमेशभाई बाबूभाई पटेल, महाराष्ट्र की सांगली लोकसभा के सांसद विशाल प्रकाश बाबू पाटिल, खडूर साहिब के सांसद खालिस्तानी नेता अमृतपाल सिंह, फरीदकोट के सांसद सरबजीत सिंह खालसा और बिहार की पूर्णिया के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव शामिल हैं।
इन सात लोगों में से पप्पू यादव, अमृतपाल सिंह और सरबजीत सिंह खालसा के अलावा और चार निर्दलीय सांसद जरूरत पड़ने पर बीजेपी को समर्थन दे सकते हैं। बाकी दो और की जरूरत है तो उसकी भरपाई तो हो ही जाएगी। अब चाहे वो भरपाई जगनमोहन रेड्डी कर दें या फिर कोई और, लेकिन इन सीटों की भरपाई तो हो ही जाएगी। लिहाजा बिना नीतीश कुमार और बिना चंद्रबाबू नायडू के भी सरकार बनाने की नौबत आई तो भारतीय जनता पार्टी पीछे नहीं हटेगी। छोटे दलों और निर्दलीयों के साथ बीजेपी बहुमत के आंकड़े को पार कर ही जाएगी।