हिमाचल प्रदेश में ‘नेमप्लेट’ विवाद: कांग्रेस सरकार ने होटल-रेस्तरां के लिए जारी किए नए निर्देश, BJP की राह पर सुक्खू सरकार

हिमाचल प्रदेश:  सुक्खू सरकार ने हाल ही में होटल, ढाबों और रेस्तरां के लिए एक विवादास्पद ‘नेमप्लेट’ आदेश जारी किया है, जो कि बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा उठाए गए समान कदमों के बाद आया है। इस नए फरमान के तहत, सभी खाद्य व्यवसायियों को अपनी पहचान और नाम की जानकारी अपने प्रतिष्ठान पर प्रदर्शित करनी होगी। यह निर्णय शहरी विकास एवं नगर निगम की एक बैठक में लिया गया, जिसमें मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने सोशल मीडिया पर इसकी घोषणा की।

हालांकि, यह कदम कांग्रेस पार्टी के उच्च नेतृत्व को पसंद नहीं आया, जिसके परिणामस्वरूप मंत्री विक्रमादित्य सिंह को दिल्ली बुलाया गया और उन्हें पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से फटकार भी मिली। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में हुई इस बैठक में, सिंह को अपनी टिप्पणी के लिए जिम्मेदार ठहराया गया, जो कि पार्टी के लिए शर्मिंदगी का कारण बनी।

मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने बताया कि यह निर्णय राज्य में हाल ही में हुई घटनाओं को देखते हुए लिया गया है, जिससे शांति और सुरक्षा बनाए रखने की जिम्मेदारी महसूस की गई। उन्होंने कहा कि उनकी योजना है कि हर स्ट्रीट वेंडर और खाद्य व्यवसायी को एक पहचान पत्र जारी किया जाएगा, ताकि ग्राहकों को किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े।

सिंह ने कहा, “हम चाहते हैं कि हिमाचल प्रदेश में शांति और सद्भाव बना रहे। यदि कोई बाहरी व्यक्ति रोजगार के लिए राज्य में आता है, तो उसका स्वागत है। लेकिन, हमें सुरक्षा, स्वच्छता और कानून व्यवस्था पर ध्यान रखना होगा।”

इस विवाद के बीच, यह स्पष्ट है कि सुक्खू सरकार की यह पहल न केवल स्थानीय कारोबारियों को प्रभावित कर रही है, बल्कि इससे राज्य की राजनीति में भी हलचल मची हुई है। पिछले सप्ताह उत्तर प्रदेश सरकार ने भी खाद्य दुकानों और रेस्तरां के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिसमें मालिकों के नाम प्रदर्शित करने और CCTV कैमरे लगाने की अनिवार्यता शामिल थी। इस तरह के आदेशों से न केवल कारोबारियों में चिंता बढ़ी है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि दोनों राज्यों में राजनीतिक दल किस तरह से सार्वजनिक सुरक्षा और सेवा को लेकर अपने दृष्टिकोण को पेश कर रहे हैं।

हिमाचल प्रदेश के इस ‘नेमप्लेट’ विवाद ने राजनीति के साथ-साथ स्थानीय कारोबारियों के बीच भी बहस को जन्म दिया है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या यह कदम वास्तव में ग्राहकों के लिए फायदेमंद होगा या फिर यह और अधिक विवादों को जन्म देगा