तमिलनाडु में भाषा विवाद: सीएम एमके स्टालिन का केंद्र पर प्रहार, बोले- समानता की मांग करना राष्ट्रविरोध नहीं
चेन्नई : तमिलनाडु में भाषा नीति और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को लेकर जारी विवाद के बीच मुख्यमंत्री और डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि भाषाई समानता की मांग करना अंधराष्ट्रवाद नहीं है, बल्कि असली अंधराष्ट्रवादी वे लोग हैं जो हिंदी को जबरन थोपने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि हिंदी के कट्टर समर्थक यह मानते हैं कि हिंदी का वर्चस्व उनका स्वाभाविक अधिकार है, लेकिन जब तमिल भाषा और क्षेत्रीय भाषाओं के सम्मान की बात की जाती है तो उसे राष्ट्रविरोधी करार दिया जाता है।
स्टालिन ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट के जरिए यह मुद्दा उठाया और कहा कि जब विशेषाधिकार आदत बन जाता है, तो समानता उत्पीड़न जैसी लगने लगती है। उन्होंने इस कथन को दोहराते हुए कहा कि कुछ कट्टरपंथी जब तमिलनाडु में तमिल भाषा और संस्कृति के सम्मान की बात करने वालों को अंधराष्ट्रवादी और राष्ट्रविरोधी करार देते हैं, तो यह उनके संकीर्ण मानसिकता को दर्शाता है। उन्होंने डीएमके की देशभक्ति पर सवाल उठाने वालों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि पार्टी ने चीनी आक्रमण, बांग्लादेश मुक्ति संग्राम और कारगिल युद्ध के दौरान देश को सबसे अधिक आर्थिक सहयोग दिया था, जबकि वही लोग आज डीएमके की राष्ट्रभक्ति पर प्रश्न उठा रहे हैं, जिनके वैचारिक पूर्वज महात्मा गांधी की हत्या में शामिल थे।
स्टालिन ने आगे कहा कि असली अंधराष्ट्रवाद वह है, जिसमें 140 करोड़ लोगों पर शासन करने वाले तीन प्रमुख आपराधिक कानूनों को ऐसी भाषा में नाम दिया जाता है, जिसे तमिलनाडु के लोग समझ भी नहीं सकते। उन्होंने केंद्र सरकार पर दक्षिण भारत, विशेष रूप से तमिलनाडु को दोयम दर्जे का दर्जा देने का आरोप लगाया और कहा कि जब तमिलनाडु राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) जैसे प्रस्तावों को स्वीकार करने से इनकार करता है, तो उसके साथ भेदभाव किया जाता है और उसे उसका उचित अधिकार देने से इंकार किया जाता है। स्टालिन ने जोर देकर कहा कि जबरन थोपी गई कोई भी चीज दुश्मनी को जन्म देती है, और यह दुश्मनी राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा बन सकती है।
उन्होंने केंद्र सरकार की भाषा नीति की आलोचना करते हुए कहा कि हिंदी के जबरन थोपने की मानसिकता ही असली राष्ट्रविरोधी कदम है, क्योंकि यह देश की भाषाई विविधता को नुकसान पहुंचाता है। इस पूरे विवाद के केंद्र में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) का क्रियान्वयन भी है, जिस पर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बीच लगातार बयानबाजी हो रही है। शिक्षा मंत्री प्रधान ने तमिलनाडु में एनईपी लागू न करने के स्टालिन के रुख पर असंतोष जताया है, जबकि स्टालिन का आरोप है कि केंद्र सरकार इसे जबरन थोपना चाहती है।
उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि तमिलनाडु किसी भी हालत में हिंदी थोपे जाने को स्वीकार नहीं करेगा और अपनी क्षेत्रीय भाषा, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएगा। केंद्र सरकार ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा है कि वह किसी पर भी भाषा या नीति नहीं थोप रही, बल्कि एनईपी देश के सभी राज्यों के विकास के लिए है। हालांकि, इस पूरे विवाद ने एक बार फिर हिंदी बनाम क्षेत्रीय भाषाओं के मुद्दे को राष्ट्रीय बहस के केंद्र में ला दिया है और तमिलनाडु की भाषा नीति तथा शिक्षा नीति पर केंद्र और राज्य सरकार के बीच टकराव को और तेज कर दिया है।
