ग्रेट निकोबार परियोजना पर जयराम रमेश का आक्रोश: ‘सरकार जानबूझकर आपदा को न्योता दे रही है’

 नई दिल्ली:  कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना को लेकर पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बनाने में सरकार की नाकामी पर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने इस परियोजना के संभावित पारिस्थितिकीय और मानवीय प्रभावों को रेखांकित करते हुए इसे “आपदा को न्योता” देने वाला करार दिया है। रमेश ने पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को लिखे 10 पन्नों के पत्र में परियोजना से जुड़े कई सवाल उठाए हैं, जिसमें उन्होंने सरकार की ओर से की जा रही प्रक्रियाओं पर भी सवाल खड़े किए हैं। उनका आरोप है कि परियोजना को लेकर गठित उच्चस्तरीय समिति पक्षपातपूर्ण है और उसमें स्वतंत्र विशेषज्ञों को शामिल नहीं किया गया, जो इस महत्वपूर्ण परियोजना की सार्थक समीक्षा कर सकें।

जयराम रमेश ने इस परियोजना को लेकर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) द्वारा दी गई याचिकाओं पर सुनवाई लंबित होने के बावजूद सरकार द्वारा अभिरुचि पत्र आमंत्रित किए जाने पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि ऐसा करना पारिस्थितिकीय और मानवीय आपदा को आमंत्रण देने के समान है। रमेश का मानना है कि परियोजना के लिए दी गई पर्यावरणीय मंजूरी की समीक्षा का जो तरीका अपनाया गया है, वह पूरी तरह से असंतुलित और पक्षपातपूर्ण है, क्योंकि उच्चाधिकार प्राप्त समिति (HPC) में किसी स्वतंत्र विशेषज्ञ या संस्थान को शामिल नहीं किया गया है। यह समिति अपनी संरचना के कारण निष्पक्ष समीक्षा करने में विफल रही है, और उसकी रिपोर्ट को गुप्त रखा गया है, जिससे परियोजना की पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं।

रमेश ने सरकार के इस दावे पर भी सवाल खड़े किए हैं कि यह परियोजना सामरिक और रणनीतिक महत्व की है। उन्होंने पूछा कि कैसे एक टाउनशिप, वाणिज्यिक ट्रांस-शिपमेंट पोर्ट और बिजली संयंत्र जैसी परियोजनाओं को “रणनीतिक परियोजनाओं” का दर्जा दिया जा सकता है, जबकि इस पर कोई सार्वजनिक चर्चा नहीं हुई। उनका मानना है कि रक्षा और सामरिक विचारों का सम्मान करते हुए भी पर्यावरण और आदिवासी समुदायों की सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए, जो इस परियोजना में नजरअंदाज किया जा रहा है।

रमेश ने अपने पत्र में इस बात पर जोर दिया कि परियोजना के आदिवासी समुदायों और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ेंगे, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने मांग की कि सरकार इस परियोजना पर पुनर्विचार करे और इसे पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से संतुलित तरीके से आगे बढ़ाए।