29 नवंबर को ईरान, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन के साथ परमाणु मुद्दे पर करेगा चर्चा
ईरान: ईरान 29 नवंबर को जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन के साथ अपने परमाणु कार्यक्रम और उससे जुड़े अन्य मुद्दों पर बातचीत करेगा। इस संवाद को परमाणु समझौते (ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन, या JCPOA) को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता एस्माईल बाघेई ने इस वार्ता की पुष्टि करते हुए कहा कि बातचीत ‘गरिमा और विवेक’ के सिद्धांतों पर आधारित होगी। साथ ही, इसमें परमाणु कार्यक्रम के अलावा फिलीस्तीन, लेबनान और अन्य क्षेत्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी चर्चा की जाएगी।
ईरान ने 2015 में P5+1 देशों (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य- अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन, प्लस जर्मनी) और यूरोपीय संघ के साथ JCPOA पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के तहत, ईरान ने प्रतिबंधों में राहत के बदले अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने पर सहमति व्यक्त की थी। यह समझौता तेहरान को परमाणु हथियारों के निर्माण से रोकने के लिए एक कूटनीतिक पहल थी।
हालांकि, 2018 में अमेरिका ने समझौते से अलग होकर ईरान पर ‘अधिकतम दबाव’ की नीति लागू की। इसके तहत, अमेरिका ने ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाए और अन्य देशों और कंपनियों को ईरान के साथ व्यापार करने से रोक दिया। इन प्रतिबंधों के कारण ईरान की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई और JCPOA का प्रभाव लगभग समाप्त हो गया।
JCPOA को फिर से लागू करने के लिए अप्रैल 2021 में ऑस्ट्रिया के वियना में बातचीत शुरू हुई। हालांकि, कई दौर की बातचीत के बावजूद, अगस्त 2022 के बाद से कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है। गुरुवार को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने ईरान के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें उससे एजेंसी के साथ अधिक सहयोग की मांग की गई।
इसके जवाब में, ईरान ने उन्नत सेंट्रीफ्यूज को सक्रिय करने की घोषणा की, जिससे क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तनाव और बढ़ गया है। ईरान ने इस प्रस्ताव को ‘अनुचित’ करार दिया है और अपने परमाणु कार्यक्रम को लेकर पश्चिमी देशों के दबाव का विरोध किया है।
यह वार्ता JCPOA को पुनर्जीवित करने और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। परमाणु समझौते के पुनरुद्धार से न केवल ईरान को आर्थिक राहत मिलेगी, बल्कि यह मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव को कम करने में भी मदद कर सकता है।
साथ ही, ईरान इस वार्ता के दौरान फिलीस्तीन और लेबनान जैसे मुद्दों पर अपनी स्थिति स्पष्ट कर सकता है। यह वार्ता क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर ईरान और यूरोपीय देशों के बीच संवाद का एक महत्वपूर्ण अवसर है।
इस वार्ता में सफलता पाने के लिए दोनों पक्षों को अपने रुख में लचीलापन दिखाना होगा। हालांकि, अमेरिका की वार्ता में अनुपस्थिति और IAEA के साथ ईरान के बढ़ते मतभेद इस प्रक्रिया को चुनौतीपूर्ण बना सकते हैं। फिर भी, यह बातचीत JCPOA को पुनर्जीवित करने, ईरान को प्रतिबंधों से राहत देने, और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक नई शुरुआत का संकेत दे सकती है।
यह वार्ता वैश्विक परमाणु अप्रसार और कूटनीति के माध्यम से विवादों को सुलझाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण परीक्षण होगी। यदि इसमें प्रगति होती है, तो यह न केवल ईरान और यूरोपीय देशों के लिए, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए भी एक सकारात्मक संकेत होगा।