संपादक अनिल पुसदकर की कलम से
बेंगलुरु/रायपुर। कल तक जो टमाटर देश की राजनीति का मुख्य मुद्दा बना हुआ था वह आज सड़कों पर लावारिस पड़ा हुआ है। जो अपनी कीमतों के कारण हर विपक्षी दल का चहेता बना हुआ था और सरकार का सर दर्द, वही टमाटर आज अपने उत्पादकों के लिए भी सर दर्द बन गया है। कर्नाटक के किसानों को अब टमाटर का भाव नहीं मिल रहा है। नुकसान का सौदा होने के कारण वह उसे सड़क पर फेंकने को मजबूर हो गए हैं। खाद बीज और कीटनाशक की लागत तो निकल नहीं पा रही है उस पर भाड़े का नुकसान अलग से होने की आशंका के कारण किसान उसे सड़क पर फेंकने पर मजबूर है। महज कुछ महीनो में देश की राजनीति का केंद्र बिंदु होने से आज सड़कों पर पहुंच चुके टमाटर की सुध लेने वाला कोई नहीं है। कल तक हर जुबान पर चढ़े हुए टमाटर की कोई बात भी नहीं कर रहा है।