गोवर्धन पूजा का महत्त्व और पूजा विधि: जानें क्यों मनाते हैं गोवर्धन पर्व

गोवर्धन पूजा, जो दीपावली के अगले दिन मनाई जाती है, भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इसे अन्नकूट पर्व के नाम से भी जाना जाता है और यह दिन भगवान कृष्ण की उस घटना की स्मृति में मनाया जाता है जब उन्होंने अपने भक्तों और वृंदावन के लोगों को इंद्रदेव के क्रोध से बचाया था। इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है और इसका प्रमुख उद्देश्य प्रकृति और पशुधन की महत्ता को दर्शाना होता है। गोवर्धन पूजा न केवल एक धार्मिक कृत्य है, बल्कि इसमें प्रकृति के संरक्षण, समृद्धि और धनधान्य की कामना भी निहित है।

गोवर्धन पूजा का पौराणिक महत्व

पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर गोकुलवासियों को लगातार सात दिनों तक बारिश से बचाया था। यह कथा बताती है कि जब इंद्रदेव नाराज होकर गोकुल पर मूसलधार बारिश भेजने लगे तो कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर सभी को आश्रय दिया। इस घटना के बाद, लोगों ने गोवर्धन पर्वत को पूजनीय माना और इंद्र की पूजा के बजाय गोवर्धन की पूजा का विधान आरंभ किया। इसी कारण हर वर्ष गोवर्धन पूजा की जाती है, जिसमें भगवान कृष्ण के गोवर्धन पर्वत को उठाने और संकटमोचन बनने का स्मरण किया जाता है।

गोवर्धन पूजा विधि

गोवर्धन पूजा मुख्यतः घरों और मंदिरों में भक्तिभाव से संपन्न की जाती है। इस दिन विभिन्न पकवानों का भोग लगाकर भगवान को प्रसन्न करने का रिवाज है, जिसे अन्नकूट कहते हैं। आइए जानें गोवर्धन पूजा की विधि को विस्तार से:

  1. पूजा स्थल की तैयारी:
    गोवर्धन पूजा के लिए सबसे पहले घर के आंगन या किसी खुले स्थान को गोबर और गेरू से लीपा जाता है। आंगन में गोवर्धन पर्वत का चित्र या प्रतिमा बनाई जाती है, जिसे प्राकृतिक रंगों और फूलों से सजाया जाता है। कुछ स्थानों पर गोवर्धन के रूप में गोबर का पर्वत बनाते हैं और इस पर पेड़-पौधों, गाय और ग्वालों की आकृति बनाकर कृष्ण की लीला का प्रदर्शन किया जाता है।
  2. भगवान कृष्ण और गोवर्धन की प्रतिमा:
    गोवर्धन पर्वत के चित्र के साथ भगवान कृष्ण की प्रतिमा स्थापित की जाती है। पूजा के लिए दीपक, अगरबत्ती, पुष्प, मिष्ठान्न, ताजे फल, और अन्नकूट में बनाए गए पकवान सजाए जाते हैं। विशेष रूप से गोधूलि वेला के समय गोवर्धन पूजा की जाती है।
  3. गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा:
    पूजा विधि में एक प्रमुख भाग है गोवर्धन की परिक्रमा। लोग गोवर्धन के प्रतीक पर्वत की चारों ओर परिक्रमा करते हैं, और साथ ही कीर्तन और भजन करते हैं। गोवर्धन की परिक्रमा करते समय भगवान श्रीकृष्ण की जयकारा और भजन गाए जाते हैं, जो वातावरण को भक्तिमय बना देता है।
  4. अन्नकूट का भोग:
    गोवर्धन पूजा के दिन अन्नकूट का आयोजन होता है, जिसमें 56 या 108 प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं। यह प्रसाद भगवान को अर्पित करने के बाद भक्तों में बांटा जाता है। अन्नकूट में विशेषतः मिठाइयां, सब्जियाँ, अनाज और दही, दूध, मक्खन जैसी चीजें शामिल होती हैं, जो गोवर्धन पर्वत और प्रकृति के प्रति श्रद्धा का प्रतीक हैं।
  5. गौ-पूजा:
    गोवर्धन पूजा का एक और महत्वपूर्ण पहलू गौ-पूजा है। इस दिन गायों को स्नान कराकर उन्हें सजाया जाता है, और उनकी विशेष पूजा की जाती है। गोधन का यह पर्व कृषकों के लिए एक आभार पर्व है, जहां पशुधन के संरक्षण और उन्हें सम्मान देने की परंपरा निभाई जाती है।
  6. मंत्र जाप और प्रार्थना:
    पूजा के दौरान कृष्ण मंत्रों का जाप किया जाता है। इसके अतिरिक्त, सभी परिवारजन मिलकर भगवान कृष्ण से सुख, समृद्धि, और परिवार के कल्याण की प्रार्थना करते हैं।

गोवर्धन पूजा का सामाजिक और प्राकृतिक महत्व

गोवर्धन पूजा प्रकृति की पूजा का प्रतीक है, जिसमें मनुष्य के साथ-साथ पृथ्वी, जल, और पर्यावरण के संतुलन का संदेश भी निहित है। यह पर्व हमें पशु-धन और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का संदेश देता है। गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा कर हम यह संदेश देते हैं कि सभी जीव-जंतुओं और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और सम्मान करना हमारा कर्तव्य है। यह पूजा एक तरह से प्रकृति के प्रति हमारे ऋण की पूर्ति का भी प्रतीक है।

गोवर्धन पूजा इसलिए न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि इसका गहरा सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्व भी है। इस दिन किए गए कार्य मनुष्य को प्रकृति से जुड़ने और संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देते हैं।