नई दिल्ली। आपने अभी तक सबसे बड़ा नोट 2000 रुपये का ही देखा होगा। यही भारत के इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा बैंक नोट भी है। नोटबंदी से पहले तो सबसे बड़ा बैंक नोट 1000 रुपये का ही था। अगर आपको बताया जाए कि दुनिया में 100 ट्रिलियन यानी 100 लाख करोड़ का भी नोट जारी हो चुका है, तो शायद आप यकीन नहीं करें, लेकिन यह सच है। आर्थिक संकटों से जूझ रहे देश जिम्बाब्वे में ऐसा हो चुका है।

दरअसल जिम्बाब्वे उन चुनिंदा देशों में शामिल है, जहां हाइपरइंफ्लेशन सच हो चुका है। साल 2008 में जब पूरी दुनिया आर्थिक चुनौतियों से जूझ रही थी, जिम्बाब्वे की स्थिति ज्यादा ही बिगड़ गई थी। तब जिम्बाब्वे में महंगाई इस कदर बेकाबू हो गई थी कि वहां के सेंट्रल बैंक को 100 लाख करोड़ डॉलर का बैंकनोट जारी करना पड़ गया था। विकराल आर्थिक संकट के कारण जिम्बाब्वे का विदेशी मुद्रा भंडार समाप्त हो गया था और उसकी करेंसी जिम्बाब्वीयन डॉलर की वैल्यू रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गई थी।

जिम्बाब्वे में उस समय संकट का ऐसा आलम था कि नवंबर 2008 में महंगाई की दर 79,600,000,000 फीसदी पर पहुंच गई थी। इसका असर जिम्बाब्वीयन डॉलर की वैल्यू पर हुआ। इसकी वैल्यू इतनी कम हो गई थी कि ब्लैक मार्केट में ब्रेड का एक टुकड़ा 1000 करोड़ जिम्बाब्वीयन डॉलर तक पहुंच गई थी। इसी कारण रिजर्व बैंक ऑफ जिम्बाब्वे को ट्रिलियन यूनिट की करेंसी लाने की जरूरत पउ़ गई थी। तब वहां 100 लाख करोड़ यूनिट और 50 लाख करोड़ यूनिट की करेंसी आम हो गई थी। हालांकि बाद में जिम्बाब्वे ने अमेरिकी डॉलर और अफ्रीकी रैंड को अपनाकर अपनी करेंसी डिसकन्टीन्यू कर दी थी।

अभी फिर से जिम्बाब्वे में महंगाई तेजी से बढ़ने लगी है। मई में महंगाई की दर 131.7 फीसदी पर पहुंच गई है। पिछले साल जून के बाद पहली बार महंगाई की दर 100 फीसदी के पार निकली है। इससे पहल अप्रैल में महंगाई की दर 96.4 फीसदी थी। अभी कोरोना महामारी के बाद रूस और यूक्रेन के बीच महीनों से जारी लड़ाई ने ने जिम्बाब्वे की स्थिति को बिगाड़ने में योगदान दिया है।
खबरों के अनुसार, जिम्बाब्वे में अभी फिर से विदेशी मुद्रा की कमी का संकट पैदा हो गया है। इस संकट के कारण कंपनियां अन्य देशों से सामान नहीं खरीद पा रही हैं और जिम्बाब्वे में मैन्यूफैक्चरिंग ठप हो गया है। यूक्रेन जिम्बाब्वे के लिए गेहूं और फर्टिलाइजर्स का प्रमुख सप्लायर था। अभी लड़ाई के चलते इन दोनों की आपूर्ति बाधित हो गई है। बदले हालात को देखते हुए लोगों को इस बात का डर सता रहा है कि कहीं फिर से 2008 वाला दौर वापस न आ जाए।