“करहल में चुनावी जंग: सपा की दीवारों पर चढ़ेगा कौन, लालू का दामाद या बाबा का बुलडोजर?”
उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही राजनीतिक पारा बढ़ गया है, और सभी की नजरें करहल विधानसभा सीट पर टिकी हुई हैं। यह सीट समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद खाली हुई है, और सपा ने इसे अपना अभेद किला मान रखा है। करहल सीट पर सपा का कब्जा 1993 से है, जब से बाबू राम यादव ने इस सीट पर अपनी राजनीति की शुरुआत की थी। तब से यह सीट सपा के लिए एक मजबूत गढ़ बनी हुई है, जिसमें चार बार सोबरन सिंह यादव और एक बार अखिलेश यादव विधायक रह चुके हैं।
अखिलेश यादव ने 2022 में इस सीट से भाजपा के एसपी सिंह बघेल को मात देकर विधायक का चुनाव जीता था, लेकिन कन्नौज लोकसभा सीट से जीतने के बाद उन्होंने करहल से इस्तीफा दे दिया। इस इस्तीफे के बाद करहल सीट पर अब उपचुनाव होने जा रहा है, जिसमें कुल 3,75,000 मतदाता हैं। इनमें यादव, अनुसूचित जाति, ठाकुर, बघेल, मुस्लिम, ब्राह्मण और वैश्य जातियों के मतदाता शामिल हैं।
समाजवादी पार्टी ने करहल के लिए अपने प्रत्याशी के रूप में तेजप्रताप यादव को चुना है, जो लालू प्रसाद यादव के दामाद हैं और अखिलेश यादव के भतीजे भी हैं। तेजप्रताप यादव का चुनावी मैदान में उतरना एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि उनकी पहचान और परिवार की राजनीतिक विरासत इस सीट पर उनके लिए एक मजबूत आधार बन सकती है।
भाजपा, जो कि इस सीट को अपने कब्जे में लेने के लिए पूरी तरह से तैयार है, ने भी अपनी रणनीतियाँ बनाना शुरू कर दिया है। सपा और भाजपा के बीच यह मुकाबला केवल चुनावी ही नहीं, बल्कि जातीय समीकरणों के लिए भी महत्वपूर्ण होगा। यादव वोटर्स की संख्या इस सीट पर निर्णायक साबित हो सकती है, और भाजपा को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे सपा के गढ़ में सेंध लगा सकें।
आगामी चुनावों के लिए चुनाव आयोग ने तारीखें तय कर दी हैं। 18 अक्टूबर को अधिसूचना जारी की जाएगी, जिसके बाद नामांकन प्रक्रिया शुरू होगी। 25 अक्टूबर तक प्रत्याशी अपना नामांकन भर सकेंगे, और 30 अक्टूबर तक वे अपना नाम वापस ले सकते हैं। 13 नवंबर को इन 9 सीटों पर मतदान होगा, और 23 नवंबर को मतगणना होगी। इस प्रकार, करहल विधानसभा उपचुनाव ने सभी राजनीतिक दलों के लिए एक नई चुनौती पेश की है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन बनेगा करहल का किंग।
