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दोष मुक्त हुए कांग्रेस नेता संजीव शुक्ला,सुबोध हरितवाल, गुलजेब अहमद और जोगी कांग्रेसी प्रदीप साहू

रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजनीति से जुड़े वर्ष 2011 एक पुराने मामले में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी गायत्री साय ने सुनवाई करते हुए ने फैसला सुनाया। कांग्रेस संगठन से जुड़े युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता द्वय संजीव शुक्ला व सुबोध हरितवाल, महामंत्री गुलजेब अहमद एवं अजीत जोगी युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप साहू को दोषमुक्त किया गया। इस प्रकरण में अभियोजन पिछले 11 वर्षों में एक भी साक्ष्य को उपस्थित नहीं कर सकी। न्यायालय से न्याय पाने के लिए छात्र नेता लगातार 11 साल से स्वयं अथवा अपने अधिवक्ता के माध्यम से न्यायालय में उपस्थित होते रहे। न्यायालय के चक्कर काटते रहे।
उपरोक्त प्रकरण पुलिस थाना सरस्वती नगर रायपुर छत्तीसगढ़ के द्वारा वर्ष 2011 में कांग्रेस संगठन से जुड़े छात्र नेता संजीव शुक्ला, सुबोध हरितवाल, गुलजेब अहमद और प्रदीप साहू के खिलाफ, पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में आयोजित दीक्षांत समारोह कार्यक्रम में विदेशी परिधान के विरोध और भारतीय परिधान को लागू करने की मांग को लेकर प्रदर्शन करने के कारण बनाया गया था। न्यायालय से दोषमुक्त होने के बाद कांग्रेस नेता संजीव शुक्ला ने कहा रमन राज में हमेशा छात्र हित में किए जाने वाले छात्रों के आंदोलन को दबाने और कुचलने का काम किया जाता था। सुबोध हरितवाल ने कहा तत्कालीन रमन सरकार छात्र विरोधी और तानाशाही थी,जो अपने 15 साल के कार्यकाल के दौरान छात्र नेताओं और कांग्रेस नेताओं को झूठे मामले में फंसाने का काम करती रही है। प्रदीप साहू ने कहा निर्दोष होकर भी हम लोगों ने रमन सरकार के पुलिसिया आतंक के कारण 11 साल कोर्ट कचहरी के चक्कर काटते रहे। आखिरकार हमें न्यायालय से न्याय मिला। गुलजेब अहमद ने कहा न्यायालय ने आज दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया। देर से सही पर न्यायालय ने आज हमारे साथ न्याय किया है। न्यायपालिका के प्रति आस्था और विश्वास बढ़ा है।
उपरोक्त प्रकरण में छात्र नेताओं की ओर से अधिवक्ता भगवानू नायक व विवेक तनावनी ने पैरवी की। अधिवक्ता भगवानू नायक ने कहा स्पीडी ट्रायल अनुच्छेद 21 भारतीय संविधान के अंतर्गत आरोपी का अधिकार होता है। 11 वर्षों में अभियोजन एक भी साक्ष्य न्यायालय में उपस्थित नहीं कर सकी। वैसे भी धारा 188 भादवि में पुलिस को सीधे एफआईआर करने का अधिकार नहीं है, बल्कि लोकसेवक की ओर से न्यायिक मजिस्ट्रेट समक्ष परिवाद प्रस्तुत करना होता है,तब न्यायालय उस पर संज्ञान लेती है। न्यायालय ने दूध का दूध और पानी का पानी किया। सन 2011 के पुराने मामले में सभी दोष मुक्त हुए।

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