सीएम सिद्धारमैया का आरोप- ‘महत्वहीन मुद्दों’ पर रिपोर्ट मांग रहे राज्यपाल, सरकार की जांच जारी

कर्नाटक:  कर्नाटक में राजनीतिक उठापटक का नया अध्याय शुरू हो गया है। राज्यपाल और मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बीच कथित आर्कावती लेआउट घोटाले को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। राज्यपाल ने मुख्य सचिव शालिनी रजनीश को पत्र लिखकर इस घोटाले में केम्पन्ना आयोग की रिपोर्ट और अन्य संबंधित जानकारी की प्रति मांगी है, जिसमें आरोप है कि सिद्धारमैया ने अपने पिछले कार्यकाल में भूमि को अधिसूचना मुक्त कर घोटाला किया। इस पत्र को लेकर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने तीखा पलटवार किया है।

सिद्धारमैया का भाजपा पर निशाना

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भाजपा पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि भाजपा को इस मामले में इतनी ही गंभीरता थी, तो उन्होंने अपने चार साल के कार्यकाल में इस रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की। उन्होंने कहा, “भाजपा के पास इस मामले की रिपोर्ट थी, लेकिन उन्होंने इसे विधानसभा में पेश क्यों नहीं किया?” उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सिर्फ राजनीतिक फायदा उठाने के लिए इस मुद्दे को उछाल रही है।

रिपोर्ट पर विचार करेगी सरकार

मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि उनकी सरकार इस रिपोर्ट को लेकर जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं लेगी। “हमने इस रिपोर्ट के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने के लिए केशवनारायण की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है,” सिद्धारमैया ने कहा। “हम रिपोर्ट को ध्यानपूर्वक जांचने के बाद ही कोई निर्णय लेंगे।” उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा विधायक सी. टी. रवि, जिन्होंने राज्यपाल को पत्र लिखकर रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की है, खुद उस समय सरकार में थे, लेकिन तब उन्होंने इस मुद्दे को क्यों नहीं उठाया?

राज्यपाल पर आरोप

मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि राज्यपाल बार-बार “महत्वहीन मुद्दों” पर रिपोर्ट मांग रहे हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि राज्यपाल को एक शिकायत मिली है कि उन्होंने कुछ दस्तावेज़ों पर कन्नड़ की बजाय अंग्रेजी में हस्ताक्षर किए हैं। “क्या यह कोई मुद्दा है?” सिद्धारमैया ने सवाल उठाया। “मैं जिस भाषा में चाहूं, उसमें हस्ताक्षर कर सकता हूं।” उन्होंने कहा कि राज्यपाल को चाहिए कि वे प्रदेश के गंभीर मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करें, न कि ऐसे छोटे-छोटे मामलों पर।

केम्पन्ना आयोग की रिपोर्ट और उसका इतिहास

2014 में, सिद्धारमैया के पहले कार्यकाल के दौरान, न्यायमूर्ति एच. एस. केम्पन्ना की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया था, जो आर्कावती लेआउट घोटाले की जांच कर रहा था। 2017 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, लेकिन उस समय भी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इसे सार्वजनिक नहीं किया। भाजपा का आरोप है कि सिद्धारमैया ने रिपोर्ट में शामिल अपनी गलतियों को छुपाने के लिए इसे दबाए रखा।

भाजपा की रणनीति और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

भाजपा इस मुद्दे को लेकर आक्रामक रुख अपना रही है। सी. टी. रवि ने राज्यपाल को पत्र लिखकर रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की है। भाजपा का दावा है कि सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इस मामले में गंभीरता नहीं दिखाई और घोटाले को दबाने की कोशिश की। इस मामले को लेकर दोनों पार्टियों में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है और इससे राज्य की राजनीति में हलचल तेज हो गई है।

जनता के मन में सवाल

इस पूरे विवाद के बीच जनता के मन में भी कई सवाल उठ रहे हैं। क्या वास्तव में आर्कावती लेआउट में कोई घोटाला हुआ है? अगर हां, तो क्यों इस पर कार्रवाई नहीं की गई? और अगर नहीं, तो इस मुद्दे को बार-बार क्यों उठाया जा रहा है? इन सवालों का जवाब कब मिलेगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन फिलहाल इस विवाद ने कर्नाटक की राजनीति में हलचल मचा दी है और सभी की नजरें इस पर टिकी हुई हैं कि आखिरकार इस मामले का निष्कर्ष क्या होगा।