नेत्रहीन छात्रों की अनदेखी,स्कूल आने के लिए 3 – 4 कि.मी का करते है सफर, हौसले की है उड़ान

मनेन्द्रगढ़  | शिक्षा के क्षेत्र में सरकार भले ही सुधार और विकास के दावे कर रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। एक ओर जहां दिव्यांगों की मदद के लिए तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसे नेत्रहीन छात्र हैं जो सुविधाओं की कमी के बावजूद अपने भविष्य को संवारने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। आज हम आपको मनेन्द्रगढ़ के आमा खेरवा स्थित एक नेत्रहीन विद्यालय की कहानी दिखाने जा रहे हैं, जहाँ हौसले की उड़ान भरते ये बच्चे हमें जीवन का असली सबक सिखा रहे हैं।

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के लगभग 42 बच्चे इस विद्यालय में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। ये छात्र रोजाना 3 से 4 किलोमीटर का सफर स्टिक के सहारे तय करके स्कूल और कॉलेज जाते हैं। भीड़भाड़ वाली सड़कों, तेज़ रफ्तार से दौड़ती गाड़ियों और मौसम की चुनौतियों के बावजूद, ये बच्चे अपने सपनों का पीछा कर रहे हैं।

विडंबना यह है कि जहां ये नेत्रहीन छात्र पढ़ाई करने जाते हैं, वहां उनके लिए ब्रेन लिपि (ब्रेल) का कोई शिक्षक ही नहीं है। मजबूरन, उन्हें सामान्य छात्रों के बीच बैठकर सिर्फ सुनकर ही पढ़ाई करनी पड़ती है। दिव्यांग छात्र धर्मेंद्र सिंह गोंड़ ने अपनी व्यथा साझा करते हुए बताया, “हम छड़ी के सहारे कॉलेज जाते हैं। हमने सरकार से मांग की थी कि हमें आने-जाने के लिए वाहन की सुविधा मिले, लेकिन आज तक हमारी मांगें अनसुनी की गई हैं।”

समाज कल्याण विभाग के उप संचालक आर.के. सिन्हा ने इस समस्या को स्वीकार करते हुए कहा, “हम इन बच्चों के लिए एक वाहन की व्यवस्था करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि उनका स्कूल और कॉलेज पहुंचना आसान हो सके।”

अब सवाल यह उठता है कि सरकार कब जागेगी और कब इन नेत्रहीन छात्रों को वह सुविधाएं उपलब्ध कराएगी जिनकी उन्हें सख्त जरूरत है?