बिम्सटेक समिट 2025: भारत-बांग्लादेश कूटनीतिक पहल तेज, पीएम मोदी और मोहम्मद युनुस की संभावित बैठक पर बढ़ी चर्चा
बिम्सटेक समिट 2025: आगामी अप्रैल में बैंकॉक में होने वाले बिम्सटेक (BIMSTEC) शिखर सम्मेलन को दक्षिण एशियाई देशों के लिए कूटनीतिक और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद युनूस के बीच संभावित द्विपक्षीय बैठक को लेकर चर्चा तेज हो गई है। बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के विदेश मामलों के सलाहकार मोहम्मद तौहीद हुसैन ने पुष्टि की है कि बांग्लादेश सरकार ने इस बैठक को लेकर भारत से कूटनीतिक स्तर पर संपर्क किया है। भारत और बांग्लादेश के बीच ऐतिहासिक रूप से मजबूत कूटनीतिक संबंध रहे हैं, और दोनों देश व्यापार, सुरक्षा, ऊर्जा तथा कनेक्टिविटी जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं।
बिम्सटेक सम्मेलन के दौरान यह प्रस्तावित वार्ता इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि हाल ही में बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता और हिंसक प्रदर्शनों के चलते क्षेत्रीय स्थिरता पर कई सवाल उठे हैं। इन घटनाओं के मद्देनजर भारत और बांग्लादेश के शीर्ष नेतृत्व के बीच संभावित वार्ता को विशेष रूप से संवेदनशील माना जा रहा है। यह बैठक केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती प्रदान करने तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि इससे पूरे दक्षिण एशिया में स्थिरता और सहयोग की नई दिशा भी तय हो सकती है।
इसके अलावा, बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद युनूस 28 मार्च को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करने वाले हैं, जिससे क्षेत्रीय कूटनीतिक समीकरणों पर भी प्रभाव पड़ सकता है। इससे पहले, फरवरी में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ओमान में आयोजित इंडियन ओशन कॉन्फ्रेंस के दौरान बांग्लादेशी विदेश मामलों के सलाहकार हुसैन से मुलाकात की थी, जहां भारत-बांग्लादेश संबंधों और बिम्सटेक से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई थी।
बांग्लादेश और भारत के बीच जल संसाधन प्रबंधन, व्यापारिक संपर्क, ऊर्जा सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे मुद्दे इस वार्ता का केंद्र बिंदु हो सकते हैं। इसके अलावा, बांग्लादेश की आंतरिक राजनीतिक स्थिति और हालिया आंदोलनों के बाद बदले हुए परिदृश्य में इस बैठक को लेकर तमाम अटकलें लगाई जा रही हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस वार्ता का प्रभाव न केवल दोनों देशों पर, बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र पर पड़ेगा, जिससे क्षेत्रीय सहयोग और बहुपक्षीय कूटनीति को नई दिशा मिल सकती है।