संपादक अनिल पुसदकर की कलम से
झीरम घाटी कांड को कल 10 साल होने जा रहे हैं और झीरम कांड की बरसी पर नक्सलियों ने बस्तर को एक बार फिर दहला देने की खून से नहला देने की साजिश रची जरूर थी जिसे हमारे जवानों ने नाकाम कर दिया। आवापल्ली बासागुड़ा मार्ग पर 25 25 किलो के प्लास्टिक कंटेनरों में आईडी प्लांट की गई थी वह बेहद घातक थी और एक खतरनाक वारदात को अंजाम दे सकती थी। लेकिन बधाई हमारे जवानों को जिन्होंने एक बड़ी नक्सली साजिश को नाकाम कर दिया। लेकिन अगर समय रहते आईडी बरामद नहीं होती तो फिर शायद हमारे पास निंदा करने के अलावा और कोई चारा नहीं होता। आखिर कब तक मुआवजा बांटते रहेंगे हम? कब तक अपने ही चेहरों पर अपनों के खून के छींटे को बर्दाश्त करते रहेंगे हम? कभी तो मौत के सौदागरों के खिलाफ कोई ठोस नीति बनाएंगे हम? कभी तो बस्तर की हरी भरी वादियों को खून से लाल करने वालों का जड़ से सफाया करेंगे हम?